श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी एक स्त्री विमर्श पर आधारित भावपूर्ण लघुकथा “महाकाली का रंँग ”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 140 ☆
🔥लघु कथा – महाकाली का रंँग 🔥
कॉलेज कैंपस में गरबे का आयोजन था। नव दुर्गा का रुप बनाने के लिए कॉलेज गर्ल का चुनाव होना आरंभ हुआ। सभी की निगाह महाकाली के रोल के लिए वसुधा की ओर उठ चली।
वसुधा का रंग सामान्य लड़कियों के रंग से थोड़ा ज्यादा गहरा लगभग काले रंग का थी । रंग को लेकर सदा उसे ताने सुनने पड़ते थे। यहां तक कि घर परिवार के लोग भी कहने लगे थे… कि तुम तो इतनी काली हो तुमसे शादी कौन करेगा?
वसुधा का मन हुआ इस रोल के लिए वह मना कर दे, परंतु अपनी भावना को साथ लिए वह तैयार हो गई। परफॉर्मेंस स्टेज पर हो रहा था। दैत्य को मारने के सीन के साथ ही साथ वसुधा ने दैत्य के सिर को हाथ में लेकर अपना डायलॉग बोलना आरंभ किया…. आप सब जान ले काले गोरे रंग का भेद उसकी अपनी उपज नहीं होती। बच्चों का कोई कसूर नहीं होता। देखिए ब्लड का रंग एक ही होता है। कहते-कहते वह भाव विभोर हो नृत्य करने लगी।
उसके इस भयानक रुप को देख सभी आश्चर्य में थें कि कुछ न करने वाली लड़की अचानक इतना तेज डान्स करने लगी हैं।
तभी कालेज का खूबसूरत छात्र पुष्पों की माला लिए स्टेज पर आया। महाकाली के गले में पहना उसके चरणों पर लेट गया।
तालियों की गड़गड़ाहट से कैंपस गूंज उठा। सीने पर पांव रखते ही वसुधा की जिव्हा बाहर निकल आई…. अरे यह तो वही निखिल है!!! जिसे वह मन ही मन बहुत प्रेम करती है।
माँ काली का रुप प्रेम वशीभूत बिजली की तरह चमकने लगी वसुधा।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈