श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है “तन्मय के दोहे…”)
☆ तन्मय साहित्य # 153 ☆
☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
कुछ दोहे….
फूलों जैसा दिल कहाँ, पैसा हुआ दिमाग।
दिल दिमाग गाने लगे, मिल दरबारी राग।।
भीतर की बेचैनियाँ, भाव-हीन संवाद।
फीकी मुस्कानें लगें, चेहरे पर बेस्वाद।।
संबंधों के बीच में, मजहब की दीवार।
देवभूमि, इस देश में, यह कैसा व्यवहार।।
निश्छल सेवाभाव से, मिले परम् संतोष।
मिटे ताप मन के सभी, संचित सारे दोष।।
शुभ संकल्पों की सुखद, गागर भर ले मीत।
जितना बाँटें सहज हो, बढ़े सभी से प्रीत।।
कर्म अशुभ करते रहे, दुआ न आये काम।
मन की निर्मलता बिना, नहीं मिलेंगे राम।।
चार बरस की जिंदगी, पल-पल क्षरण विधान।
साँस-साँस नित मर रहे, मूल्य समय का जान।
जब-जब सोचा स्वार्थहित, तब-तब हुए उदास।
जब भूले हित स्वयं के, हुआ सुखद अहसास।।
सत्य मार्ग पर जब चले, कठिनाइयाँ अनेक।
अंत मिले संतोष धन, दृढ़ता विनय, विवेक।।
यह जीवन फिर हो न हो, आगे सब अज्ञात।
भेदभाव की बेड़ियाँ, छोड़ें जात – कुजात।।
रंग-रूप छोटे-बड़े, अलग/अलग सब लोग।
भिन्न-भिन्न मत-धर्म हैं, यही सुखद संयोग।।
सत्कर्मों के पेड़ पर, यश-सुकीर्ति फलफूल।
ध्यान रहे यह सर्वदा, रहें सींचते मूल।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈