श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “#जलजला …#”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 102 ☆
☆ # जलजला… # ☆
सब की आंखों में छाया कोहरा है
वक्त के हाथों में इन्सान मोहरा है
रिश्ते रोज बनते हैं , बिगड़ते हैं
कुछ लोगों का चरित्र यहां दोहरा है
चेहरे पर हंसी रहती है
आंखें कुछ और कहती है
दर्द सीने में छिपाकर हरदम
बेबसी सब कुछ सहती है
किससे कोई फरियाद करे
किसे छुपाए, किसे याद करे
कौन समझेगा यहाँ मजबूरियां
कौन अपना समय बर्बाद करे
होंठों को बंद कर के
जी रहे हैं हम
कदम कदम पर
जहर पी रहे हैं हम
कायर बन गये हैं
ज़माने को देखकर
मुर्दा बन कर जुबां को
सी रहे हैं हम
अब तो ज़ुल्म की
इंतिहा हो गई है
न्याय की उम्मीद
थक-हारकर सो गई है
ज़लज़ला आयेगा
यह तो तय है
हर सीने में आग
बारूद बो गई है /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈