श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है “सन्तोष के नीति दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 142 ☆
☆ सन्तोष के नीति दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆
चढ़े न हंडी काठ की, कभी दूसरी बार
टूटा गर विस्वास तो, शक के खुलते द्वार
वहाँ कभी मत जाइये, जहाँ न हो संतोष
मिले न खुशियाँ मिलन से, लाख वहाँ धन कोष
परहित से बढ़कर नहीँ, कोई दूजा काम
प्रेम सभी से कर चलें, हर्षित तब श्रीराम
बचें अहम से हम सदा, यह अवगुण की खान
भ्रमित करे ये सभी को, और गिराता मान
कोशिश हम करते रहें, भले कठिन हो काम
मिलता है संतोष तब, और सुखद परिणाम
कल पर कभी न टालिए, करें आज आगाज
तभी मिलेगी सफलता, पूरे हों सब काज
करें न जीवन में कभी, निंदक सा व्यवहार
बचें सदा उपहास से, हों संयित आचार
दोष पराए मत गिनो, बनकर खुद भगवंत
अंदर खुद के झाँकिये, तभी भला हो अंत
कलियुग के इस दौर में, रखें न कोई आस
साथ समय के बदलते, टूट रहा विश्वास
पढ़ लिखकर अब कीजिये, स्वयं एक व्यवसाय
हुईं नोकरी लापता, खोजें दूजी आय
प्राणों से भी प्रिय समझ, सदा किया उपकार
पर कलियुग में मिल रहा, बदले में अपकार
कहते हैं संतोष हम, प्रेम डोर कमजोर
खीचें न कभी जोर से, उसकी कच्ची डोर
गहन साधना प्रेम है, सुगम न इसकी राह
लगन,तपस्या से मिले, गर हो सच्ची चाह
बंद करें मत कोशिशें, करते रहें प्रयास
तभी मिलेगी सफलता, हों मत कभी निराश
जीवन में खुद से बुरा, कौन यहाँ संतोष
झाँका हमने स्वयं जब, देखे अपने दोष
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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