श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय आलेख – “चिंतन”)  

☆ आलेख # 160 ☆ “चिंतन” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

पाठक सबसे बड़ा समीक्षक होता है ,और सोशल  मीडिया शुध्द समीक्षक बनकर इन दिनों अपने जलवे दिखा रहा है , किताब खोलने और पढ़ने में लोग भले आलसी हो गए हैं पर सोशल मीडिया में पेन की जगह बेताब अंगुली  अपना करतब दिखा रही है , आगे चलकर तो ये होने वाला है कि अंगुली की जगह दिमाग में सोचे विचार सीधे टाईप होकर सोशल मीडिया में मिलने वाले हैं , तब कन्नी काटने वालों का भविष्य और उज्जवल हो जाएगा , क्योंकि तब निंदा रस दिमाग से अनवरत बहने लगेगा , ईष्या रूपी राक्षस दिमाग में कब्जा कर लेगा ,तब देखना मजा ही मजा आएगा , व्यंग्यकार ,कहानीकार पंतग की तरह सद्दी से कटते नजर आएंगे , बड़ी मुश्किल में व्यंग्य शूद्र से उठकर सर्वजातीय बनने के रास्ते में चला ,पर महत्वाकांक्षी लोग व्यंग्य की सूरत बिगाड़ने में तुले हैं, व्यंग्य लेखन गंभीर कर्म है, जिम्मेदारी से विसंगतियों और विद्रूपताओं पर प्रहार कर बेहतर समाज बनाने की सोच है व्यंग्य।

व्यंग्य का लेखक अपने युग ‘राडार’ के गुणों से युक्त होना चाहिए, अपने समय से आगे का ब्लु प्रिंट तैयार करने वाले वैज्ञानिक जैसा हो उसके पास ऐसी पेनी दृष्टि हो कि घटनाओं के भीतर छुपे हुए संबंधों के बीच तालमेल स्थापित कर सके, और एक चिकित्सक की तरह उस नासूर की शल्यक्रिया करने में वह माहिर हो, व्यंग्यकार वर्तमान समय के साथ ‘जागते रहो’ की टेर लगाता कोटवार हो उसे पुरस्कार और सम्मान की भूख न लगी हो, और अपनी रचना से समाज में जागृति ला सके, उसके अंदर बर्र के छत्ते को छेड़ने का दुस्साहस तो होना ही चाहिए।

व्यंग्य के लेखक के पास सूक्ष्म दृष्टि, संवेदना, विषय पर गहरी पकड़, निर्भीकता होनी आवश्यक है। व्यंग्य के लेखक में कटुता नही तीक्ष्णता ,सुई सी नोक या तलवार सी धार होना अनिवार्य् है। सबसे बड़ी बात ये है कि व्यंग्य लिखने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है, और असली बात ये है कि व्यंग्य को संवेदनशील पाठक ही समझ पाते हैं।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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