डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – सुमित्र के दोहे ।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 111 – सुमित्र के दोहे
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दीप पर्व फिर आ गया, कहां गया था यार ।
वह तो मन में ही रहा, बाहर था अँधियार।।
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आखिर कब तक रखोगे, मन में तिमिर संभाल ।
खड़ा द्वार पर उजेला, पहिनाओ जयमाल।।
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तीर मारता उजाला, तो सह लो कुछ देर।
तुमने तो काफी सहा, रजनी का अँधेर।।
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दीप – दीप कहते सभी, बाती भी तो बोल।
बाती ही तो कर रही, संगम ज्योति खगोल।।
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दीवाली की दस्तकें, दीपक की पदचाप।
आओ खुशियां मनायें, क्यों बैठे चुपचाप।।
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अंधियारे की शक्ल में, बैठे कई सवाल ।
कर लेना फिर सामना, पहले दीप उजाल।।
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कष्टों का अंबार है, दुःखों का अँधियार ।
हम तुम दीपक बनें तो, फैलेगा उजियार।।
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जितने उजले चेहरे, नहीं तुम्हारे मित्र।।
जिनकी श्यामल सूरते, संभव वही सुमित्र।।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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