श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “आकार को साकार करें। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 123 ☆

☆  आकार को साकार करें ☆ 

आभाषी सम्बन्धों की गर्मी समय के साथ बदलती जाती है। वैसे भी जब तक एक विचार धारा के लोग न हों उनमें दोस्ती संभव नहीं। जिस तरह कार्यों के संपादन हेतु टीम बनाई जाती है उसी तरह कैसे लोगों का सानिध्य चाहिए ये भी निर्धारित होता है। कार्य निकल जाने के बाद नए लोग ढूंढे जाते हैं। जीवन अनमोल है इसे व्यर्थ करने से अच्छा है कि समय- समय पर अपनी उपलब्धियों का आँकलन करते हुए पहले से बेहतर बनें और जोड़ने- तोड़ने से न घबराएँ। इन सब बातों से बेखबर सुस्त लाल जी एक ही ढर्रे पर जिए चले जा रहे थे। मजे की बात सबको तो डाँट- फटकार पड़ती पर उनका कोई बाल बांका भी नहीं कर पाता था क्योंकि जो कुछ करेगा गलती तो उससे होगी।

भाषा विकास के नाम पर कुछ भी करो बस करते रहो, सम्मान समारोह तो इस इंतजार में बैठे हैं कि कब सबको सम्मानित करें। कोई अपना नाम सम्मान से जोड़कर अखबार की शोभा बढ़ा रहा है तो कोई सोशल मीडिया पर रील वीडियो बनाकर प्रचार- प्रसार में लगा है। सबके उद्देश्य यदि सार्थक होंगे तो परिणाम अवश्य ही आशानुरूप मिलेंगे। सोचिए जब एक चित्र कितना कुछ बयान करता है तो जब दस चित्रों को जोड़कर रील बनेंगी तो मानस पटल कितना प्रभाव छोड़ेगी। इस के साथ वेद मंत्रों के उच्चारण का संदेश, बस सुनकर रोम- रोम पुलकित हो उठता है। हैशटैग करते हुए पोस्ट करना अच्छी बात है किंतु अनावश्यक रूप से अपने परिचितों की फेसबुक वाल पर घुसपैठ करना सही नहीं होता। हम अच्छा लिखें और अच्छा पढ़ें इन सब बातों के साथ- साथ जब कुछ नया सीखते चलेंगे तो मुंगेरीलाल के हसीन सपने अवश्य साकार होंगे। शब्द जीवंत होकर जब भावनाओं को आकार देते हैं तो एक सिरे से दूसरे सिरे अपने आप जुड़ते चले जाते हैं। सात समुंदर पार रहने वाले कैसे शब्दों के बल पर खिंचे चले आते हैं ये तो उनके चेहरों की मुस्कुराहट बता सकती है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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