डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य ‘भगत जी का बखेड़ा ’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 170 ☆

☆ व्यंग्य ☆ भगत जी का बखेड़ा

चुन्नू बाबू कॉलोनी के लखटकिया हैं। कॉलोनी के किसी रहवासी से कोई काम न सध रहा हो तो वह सीधे चुन्नू बाबू के घर का रुख करता है। मिस्त्री, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, सफाई कर्मचारी— किसी की भी ज़रूरत हो, चुन्नू बाबू से संपर्क किया जा सकता है। उनके पास हर उपयोगी आदमी का मोबाइल नंबर रहता है।

चुन्नू बाबू को पूरी कॉलोनी की फिक्र रहती है। कॉलोनी में कुछ ऐसा न हो जिससे कॉलोनी की नाक कटे। कॉलोनी में बाहर के लोगों के आने-जाने पर उनकी नज़र रहती है। कॉलोनी के लोगों का स्टैंडर्ड उठाने के लिए उन्होंने सब घरों में कार रखना अनिवार्य कर दिया है, चाहे उसकी उपयोगिता हो या न हो। कार के लिए लोन दिलवाने में चुन्नू बाबू सदस्य की पूरी मदद करते हैं।

कॉलोनी के गेट पर नियुक्त सुरक्षा गार्ड भी चुन्नू बाबू के ही कंट्रोल में रहता है। वे ही सदस्यों से इकट्ठा करके उसकी तनख्वाह का भुगतान करते हैं। उसके काम के बारे में शिकायत चुन्नू बाबू के पास ही आती है और वे ही उससे जवाब तलब करते हैं।

चुन्नू बाबू बहुत गतिशील आदमी हैं। कॉलोनी के कल्याण और उसका स्तर उठाने के लिए वे नयी नयी योजनाएँ लाते रहते हैं। उसी सिलसिले में स्थानीय नेताओं को कॉलोनी में बुलाकर उनका अभिनंदन भी होता रहता है। पता नहीं कौन कब काम आ जाए।

नगर निगम में दौड़-भाग करके चुन्नू बाबू ने कॉलोनी का कचरा उठाने का इंतज़ाम कर लिया है। शुरू में एक अधेड़ आकर हाथगाड़ी में हर घर से कचरा ले लेता था, लेकिन वह थोड़ा चिड़चिड़ा था। घर के कचरे के अलावा अगर बगीचे के पौधे, पत्तियाँ वगैरः दी जाएँ तो चिड़-चिड़ करता था। कुछ दिन बाद वह देस चला गया और उसकी जगह एक युवक आ गया। छः फुट की हृष्ट-पुष्ट देह। स्वभाव से शान्त। कैसा भी कचरा हो, चुपचाप उठाकर ले जाता था।

कॉलोनी में भगत जी भी रहते थे। भगत जी सीधे-सरल स्वभाव वाले आदमी थे, दूसरे की पीड़ा में कातर होने वाले। नये सफाई वाले को देख कर वे उद्विग्न हो जाते थे। इतना लंबा, स्वस्थ युवक, फौज में जाता तो नाम करता। यहाँ कचरा उठाते उठाते कुछ दिन में खुद भी कचरा हो जाएगा। संक्रमित कचरे से धीरे-धीरे दस बीमारियाँ लग जाएँगीं। हाथ में दस्ताने भी नहीं पहनता।

एक दो बार रोक कर उन्होंने इस काम में आने की उसकी मजबूरियाँ समझीं। वही पुरानी कथा— अशिक्षित माँ-बाप, कमाई को शराब में उड़ा देने वाला पिता, तीन छोटे भाई बहन, घर का खराब वातावरण, अस्वास्थ्यकर परिवेश। यानी सनीचर के बैठने का पूरा इंतज़ाम।

बात सारे वक्त भगत जी के ज़ेहन में घुमड़ती रही। इस युवक को इस तरह अपने स्वार्थ के लिए जहन्नुम में झोंके रहना पाप से कम नहीं है।

उन्होंने अपने परिचित एक सिक्योरिटी एजेंसी वाले को फोन किया। वह लड़के को लेने के लिए राज़ी हो गया। भगत जी ने लड़के को बताया तो वह खुश हो गया। ऐसी मदद की उम्मीद उसे नहीं थी।

दो दिन बाद लड़का ग़ायब हो गया। भगत जी ने इस घटना के बारे में किसी को नहीं बताया। डर था कि लोग जानकर नाराज़ होंगे। दो-तीन दिन तक कचरा उठाने कोई नहीं आया। कॉलोनी वासियों की भवें चढ़ने लगीं। चुन्नू बाबू को पता चला तो वे भी परेशान हुए।

दौड़-भाग करके चुन्नू बाबू फिर एक आदमी को पकड़ लाये, लेकिन उन्होंने पता लगा लिया कि उनके सफाई-इंतज़ाम को ‘सैबोटाज’ करने वाला कौन था। नये आदमी को नियुक्त कराने के बाद वे भगत जी के पास पहुँचे, बोले, ‘आपके परोपकार का पता हमें चल गया। बड़ी मेहरबानी कर रहे हैं आप कॉलोनी वालों पर। इस बार तो मैंने इंतज़ाम कर दिया, लेकिन फिर आपने ऐसा किया तो आगे कचरे का इंतज़ाम आप ही कीजिएगा।’

भगत जी उनकी बात सुनकर, अपराधी जैसे, उनका मुँह देखते रह गये।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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