डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 160 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – हनुमान जी का लंका गमन /सीता की खोज – 1 ☆
पवन वेग से उड़ रहे, उड़ते हैं हनुमान।
वर्षा पुष्प की कर रहे, देव करे सम्मान।।
करते सीता खोज वह, उड़ते सागर पार
पर्वत से सागर कहे, बड़ा करो आकार।।
हाथ जोड़ मैनाक है, पवनपुत्र हनुमान।
आड़े आया आपके, कर लो कुछ आराम।।
निकले सीता खोज में, वंदन है हनुमान।
मेरे मन में आपका, बहुत बड़ा सम्मान।।
लंका की इस राह में, बाधा करें प्रहार।
करना सीता खोज है, पवन न माने हार।।
रामदूत हनुमान हूं, बीच करो ना घात।
रूप धरोना सिंहिका, करता हूं आघात।।
किया प्रवेश लंका में, भव्य भवन भंडार।
भेंट लंकिनी से हुई, करते पवन प्रहार।।
कहा लंकिनी ने बहुत, हे वीर हनुमान।
मेरा जीवन धन्य हुआ, वानर तुझे प्रणाम।।
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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