श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक  शिक्षाप्रद एवं भावनात्मक लघुकथा    “वेदना ”। 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 25 ☆

☆ लघुकथा –  वेदना ☆

 

शहर से थोड़ी दूर अपार्टमेंट बनना शुरू हुआ। वहां पर पहले से थोड़ी दूर पर एक गरीब परिवार “सोनवा” रहता था। ठेकेदार ने उसके बारे में पता लगा वहां की देखरेख के लिए रख लिया और बदले में उसे थोड़ा बहुत काम करने को कहता। ठेकेदार अच्छी सोच वाला था। उसके लिए एक हाथ ठेला देकर बोला यहीं पर सब्जी भाजी बेचना शुरू करो। धीरे-धीरे तुम्हारी रोजी रोटी चलने लगेगी।

देखते-देखते कुछ सालों में अपार्टमेंट बनकर तैयार हो गया। सभी रहवासी उसमें आकर शिफ्ट हो गए। सोनवा को एक बेटा था। क्योंकि वही दिन भर खेलता और सभी को पहचानने लगा था इसलिए सभी ने प्यार से उसका नाम प्रीतम रख दिया।

प्रीतम धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। पढ़ने में होशियार था। इसी बीच ठेकेदार वहां से चला गया और सभी अपार्टमेंट वाले रहने लगे। सोनवा वहीं सब्जी का ठेला लगाता रहा। प्रीतम की पढ़ाई की फीस के लिए एक बार थोड़े बहुत पैसों की जरूरत थी। जो सोनवा के लिए इकट्ठे कर पाना मुश्किल हो रहा था। उसने सोचा कि मैंने यहां रहते रहते उम्र का पड़ाव तय कर लिया। सभी जानते पहचानते हैं। उनसे जाकर मांग लेता हूं। 25 फ्लैट वाले अपार्टमेंट में किसी ने दिया किसी ने कोई सहायता नहीं की। इसका सोनवा को कोई अफसोस नहीं था परंतु एक घर जिसको वो हमेशा अपना समझता था। उनका काम कर देता था वहां पर जाने पर मकान मालिक ने अपनी पत्नी के साथ कह दिया कि हम तुम पर विश्वास नहीं कर सकते। तुम हमारा पैसा कभी नहीं लौटा पाओगे। नौकर का बेटा नौकर ही रहेगा। यह बात सोनवा की वेदना बन गई और हार्टअटैक से उसका देहांत हो गया। मरने से पहले इस परिवार के बारे में अपने प्रीतम को बताया था।

प्रीतम अपनी मां को लेकर शहर चला गया। पढ़ाई खत्म होने पर अच्छे व्यक्तित्व के कारण और उसकी योग्यता को देखते हुए अच्छी कंपनी में उसे नौकरी मिल गई। उन दिन जिस कंपनी में काम कर रहा था वहां पर भर्ती के लिए आवेदन पत्र जमा हो रहे  थे। और लाइन में सभी प्रतिभागी खड़े थे। नियुक्ति करने वाला और कोई नहीं प्रीतम ही था। अपार्टमेंट से वही सज्जन जो कभी नौकर का बेटा कहकर प्रीतम को अपमान किया था वह भी अपने बेटे को लेकर पेड़ के नीचे खड़े थे। बड़े होने और ऊंची पदवी के कारण वह प्रीतम को नहीं पहचान सके। प्रीतम ऑफिस में जा रहा था उसी समय वह महिला पुरुष दिखाई दिए। प्रीतम तो पहचान गया परंतु वे लोग नहीं पहचान सके। चलते चलते दोनों प्रीतम को हाथ जोड़कर खड़े हो गए और पैरों पर झुक कर बोले सर हमारे लिए जीना मुश्किल हो रहा है। कहीं से कोई आसरा नहीं है। बेटे को नौकरी पर रख लीजिए। अनसुना कर प्रीतम ऑफिस चेंबर में जाकर बैठ गए। जब लड़के का नंबर आया तो उनको बुलाया गया। तीनों को सामने खड़े देख वह अपने पिताजी की वेदना को याद कर थोड़ा परेशान और दुखी हुआ परंतु अपने ओहदे को ध्यान में रखते हुए प्रीतम ने कहा -“आंटी में वही नौकर का बेटा हूं जिसको आपने थोड़े से रुपए के लिए घर से भगा दिया था। मेरे पिताजी तो इस वेदना को सह ना सके और खत्म हो गए परंतु पिताजी का साया उठने के बाद क्या होता है यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। मैं आप दोनों को इस वेदना से मरने नहीं दूंगा। कह कर प्रीतम चेंबर से वापस निकल गए। प्रीतम को पहचान दोनों दंपत्ति शर्म और पश्चाताप से हाथ जोड़े खड़े उसको जाते देखते रहे।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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