श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “मिलती हर दुआ नसीब नहीं होती”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 147 ☆
कविता मिलती हर दुआ…
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जिन्दगी जीना आसान नहीं होता,
बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता।
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चुगली के बिना कोई बात नहीं होती,
बिना बात के चुगली खास नहीं होती।
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बाग का हर पुष्प गुलाब नहीं होता,
और हर गुलाब लाजवाब नहीं होता।
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मिलती हर दुआ नसीब नहीं होती,
वर्ना इतनी दुआ फकीर नहीं होती।
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हर चेहरा कुछ न कुछ खास होता है,
चेहरे के पीछे चेहरा छिपा होता है।
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सूखे फूल किताबों में मिला करते,
अब किताबें माँग कर पढता कौन हैं।
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सच्चे प्रीत की मिसाल बना करती हैं,
लिव इन रिलेशन सिर्फ सौदे होती हैं।
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कहते हैं प्रेम उधार की कैची है,
आज प्रेम बाँटना कौन चाहता है।
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काँटा चुभने पर बनतीं प्रेम कहानी है,
आज पगडंडियों पर चलता कौन हैं।
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कभी दादा की छड़ी बन पोता चलता है,
अब परिवार में क्या दादा कोई बनता है।
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ठहाके छोड़ आए कच्चे मकानों में हम,
रिवाज इन पक्के छतों में मुस्कुराने का है।
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लिख लिख कर कर दस्तखत बनाएं हम,
कमबख्त जमाना बदल के अंगूठे पे आ गया।
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हौसले को देखे गुगल से मिले ज्ञान,
नौ साल का बच्चा समझे अपने को जवान।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈