डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके “साप्ताहिक स्तम्भ -साहित्य निकुंज”के माध्यम से अब आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की कविता “आस” )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – #2 साहित्य निकुंज ☆
☆ आस ☆
बेटियां अब बड़ी हो गई है
उम्र की
कमसिन दहलीज पर
अब खड़ी हो गई हैं.
है बेटियों के बहुत अरमान
देने हैं उन्हें अब इम्तिहान
अब वे
पुरातन छवि से परे
गढ़ रही है नए विचार
बदल दी है सौंदर्य की परिभाषा
जगती मन में है एक आशा
बदले हैं कमनीयता पुराने के रंग
बदल गया है रहन-सहन का ढंग
रच डाली है एक नई छवि
तोड़ डाले हैं यौवनता के सब बंधन
तुम हो समर्थ
तुम्हें आशाओं के पंख लगा कर
उड़ना है
अपने हौसले को बुलंद
करना है
अब पुरातन बंधन नहीं है
नहीं है किसी चीज का निषेध
छूना है आसमान यही है शेष
परंपराओं की तोड़नी है दीवार
करना है
सभी से प्यार
रखना है नारी की गरिमा मान
होगा तभी सम्मान
रचना है तुम्हें एक इतिहास
बस
इस माँ की है यही आस.
© डॉ भावना शुक्ल
बेटियों को सक्षम सबल होने की प्रेरणादाई सुंदर कविता