डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा “हृदय का नासूर…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 167 – साहित्य निकुंज ☆

☆ लघुकथा – हृदय का नासूर… ☆

‘माँ क्या हुआ ? इतनी दुखी क्यों बैठी हो ।”

बेटा क्या बताये आजकल लोग कितनी जल्दी विश्वास कर लेते है ।सब जानते है अपनों पर विश्वास बहुत देर में होता है फिर भला ये कैसे कर बैठी अंजान पर विश्वास।

“माँ कौन ?”

“प्रिया और कौन ?”

ओह्ह ..”प्रिया आंटी सोहन अंकल की बेटी ।”

“हाँ हाँ वही …”

“क्या हुआ ?”

“अभी अभी फोन आया प्रिया का तो वह बोली ….दीदी बहुत गजब हो गया मैं कहे बिना नहीं रह पा रही हूँ पर आप किसी से मत कहना मन बहुत घबरा रहा है।”

“अरे तू बोलेगी अब कुछ या पहेलियाँ की बुझाती रहेगी ।”

“हाँ हाँ बताती हूँ…”

“एक दिन बस स्टेण्ड पर एक अजनबी मिला बस आने में देर हो रही थी और मैं ऑटो करने लगी तभी एक लड़का आया और बहुत नम्रता से बोला मुझे भी कुछ दूरी तक जाना है प्लीज मुझे भी बिठा लीजिये मैं शेयर दे दूंगा। मैं न जाने क्यूँ उसके अनुरोध को न टाल पाई और ठीक है कह  कर बिठा लिया ।अब तो रोज की ही बात हो गई वह रोज उसी समय आने लगा और न जाने क्यों मैं भी उसका इन्तजार करने लगी ।हम रोज साथ आने लगे और एक अच्छे दोस्त बन गए ।उसने कहा “एक दिन माँ से मिलवाना है।”

 हमने कहा…” हम दोस्त बन गए  है अच्छे पर मेरी शादी होने वाली है हम ज्यादा कहीं आते जाते नहीं न ही किसी से बात करते है पता नही आपसे कैसे करने लगे।”

वह बोला …”कोई बात नहीं फिर कभी …”

कुछ दिन बीतने पर वह दिखाई नहीं दिया हमे चिंता हो गई तो हमने फोन किया तो उसकी मम्मी ने उठाया वह बोली ..”पापाजी बहुत बीमार है ऑपरेशन करवाना है अभि पैसों के इंतजाम में लगा है बेटा आते ही बात करवाती हूँ। “

थोड़ी देर बाद अभि का फोन आया वह बोला क्या बताये “पापा को अचानक हॉर्ट में दर्द हुआ और भर्ती कर दिया ।अब ऑपरेशन के लिए कुछ पैसों की जरुरत है 50 मेरे पास है 50 हजार की जरुरत है ।”

हमने कहा …”कोई बात नहीं हमसे ले लेना। “

वह बोला “नहीं..” हमने कहा “हम सोच रहे तुम्हारे पापा हमारे पापा।”और अगले दिन उसे पैसा दे दिया ।कुछ दिन बाद कुछ और पैसों से हमने मदद की ।वह बोला….” हम तुम्हारी पाई पाई लौटा देंगे ।मुझे नौकरी मिल गई है हमें कंपनी की ओर से बाहर जाना है दो माह बाद आकर या तुम्हारे अकाउंट में डाल देंगे ।कुछ दिन वो फोन करता रहा बातें होती रही एक दिन उसके फोन से किसी और दोस्त का  फोन आया और वह बोला…

..”मैं बाथरूम में फिसल गया पैर टूट गया है चलते नही बन रहा मैं जल्दी आकर तुम्हारा क़र्ज़ चुकाना चाहता हूँ ।”

हमने कहा “कोई बात नहीं ..कुछ दिन बाद बैंक में डाल देना ।”

वह बोला “ओके ।”

दो चार दिन बाद हमने मैसेज किया प्लीज पैसा भेजो।

तब उसके दोस्त का फोन आता है …”एक दुखद सूचना  देनी है गलती से अभि की गाड़ी के नीचे कोई आ गया और एक्सिडेंट हो गया तो उसे पुलिस ले गई है ।वह आपसे एस एम एस .से ही बात करेगा आज मैं  यह फोन उसे दे दूंगा ।”

हमने कहा..”हे भगवन ये क्या हो गया बेचारे की कितनी परीक्षा लोगे ।”

कुछ समय बाद उसका मैसेज आया ..”मैं ठीक हूँ जल्द ही बाहर आ जाऊंगा ।”

तब हमने कहा ..”आप अपने दोस्त से कहकर मेरा पैसा डलवा दो मेरी शादी है मुझे जरुरत है ।”

वह बोला “ठीक है..”

फिर हमने कई बार मैसेज किया कोई जबाब नहीं आया ।

तब मैं बहुत परेशान  हो गई और सोचने लगी एक साथ उसके साथ जो घटा वह वास्तव में था या सिर्फ एक नाटक था ।

तब मन में एक अविश्वास का बीज पनपा और हमने उसका नंबर ट्रेस किया तो वह नंबर भारत में ही दिखा रहा था। यह जानकर मन दहल गया और वह दिन याद आया जब वह बहुत अनुरोध कर रहा था होटल चलने और कुछ समय बिताने की लेकिन हमने कहा नही हमें घर जाना है यह सही नहीं है तुम्हारे साथ मेरा दोस्त रुपी पवित्र रिश्ता है ।

दीदी बोली….. “बेटा  पैसा ही गया इज्जत तो है, बेटा अब पछताये होत क्या जब…।”

“अब अपने आप को कोसने के सिवा कोई चारा नहीं है दीदी ।यह तो अब हृदय का नासूर बन गया है ।”

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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