श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना “प्रेम…”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 154 ☆
☆ “प्रेम…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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प्रेम से बचकर कहाँ जाइएगा
जहां जाइएगा वहीं पाइएगा
सृष्टि के कण-कण में है पिरोहित
कैसे इसे अब ठुकराइयेगा
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प्रेम ही मीरा प्रेम राधा है
जिन्होंने प्रेम को साधा है
प्रेम सूर प्रेम ही तुलसी है
रामायण भी प्रेम गाथा है
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जब तक प्रेम की प्यास जिंदा है
तब तक चहकता हर परिंदा है
प्रेम से रिक्त है जिसका हृदय
संतोष वही आज शर्मिंदा है
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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