श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मुक्ति… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 116 ☆
☆ # मुक्ति… # ☆
तुमने मुझको कितना सताया
तुमने मुझको कितना रूलाया
जब जब मैंने चलना सीखा
तुमने राहों में कांटे बिछाया
मैं उन कांटों को चुनती रही
फूलों के संग बुनती रही
हार बनाकर वरमाला पहनाई
फिर भी जीवन भर सुनती रही
तुमने लेकर अपनी बाँहों में
प्रतिबंध लगाया मेरी चाहो में
लोकलाज की बातें कहकर
बेड़ियाँ डाल दी मेरी पांवों में
मैं आजादी से कभी उड़ ना सकी
मैं नीले आसमान से कभी जुड़ ना सकी
सिमट के रह गई एक दायरे में
मैं मुक्ति के पथ कभी मुड़ ना सकी
मैं कब तक रहूंगी पिंजरे की मैना
कौन सुनेगा मेरा दर्द, मेरा कहना
तुम पुरूषों के दंभी संसार में
क्यों नारी को है यह सब सहना
नहीं! अब मैं नहीं डरूंगी
लोकलाज की परवाह नहीं करूंगी
तोड़ूंगी झूठा तिलिस्म तुम्हारा
मुक्ति के बीना नहीं मरूंगी /
© श्याम खापर्डे
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