श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण रचना “प्रेम…”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 155 ☆
☆ “प्रेम…” ☆ श्री संतोष नेमा ☆
जिन्हें रोशनी की तलाश है
उसे ही प्रेम की प्यास है
जो अंधेरे में रहने का हो आदि
वो जरूर नफरत का दास है
दुनिया चलती प्रेम से, प्रेम जगत का सार
प्रेम परस्पर सब रखें, यही जगत व्यवहार
खड़ी फसल जब देखता, आती तब मुस्कान
सपने देखे कृषक तब, मिले खुशी सम्मान
सोना रहा न आम अब, हुआ पहुँच से दूर
आसमान पर कीमतें, सपने हुए सब चूर
जागृत होकर अब कृषक, मांग रहा अधिकार
नाप-तौल कर दे रही, उसे आज सरकार
कुसुम-कली जब खिल उठे, महक उठें जब बाग
झूम रहे रसपान कर, लिपटे पदम पराग
ऋतु बसंत मन भावनी, उपजा मन अनुराग
धरा सुहानी लग रही, कोयल गाती राग
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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