डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अत्यंत विचारणीय व्यंग्य ‘जगत गुरू की पाठशाला ’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 180 ☆

☆ व्यंग्य ☆ जगत गुरू की पाठशाला

भाई,इधर ध्यान दें। हम दुनिया के गुरू बोल रहे हैं। हम सदियों से दुनिया को सिखाते रहे हैं। हमने दुनिया को अध्यात्म सिखाया, संगीत सिखाया, नैतिकता सिखायी, योग यानी योगा सिखाया। हमारे गुरू शिष्यों को ज्ञान देने के लिए पूरी दुनिया में उड़ते फिरे। नयी पीढ़ियों को शायद मालूम न हो कि जिन गौतम बुद्ध को कई देशों में भगवान के रूप में पूजा जाता है उनका जन्म हमारे देश में हुआ था। यह अलग बात है कि हमारे ही देश में उनको जानने और पूजने वाले बहुत कम हैं।

दुनिया को सिखाने के लिए हमारे पास अभी भी बहुत कुछ है। हमने नये-नये कोर्स और नये सिलेबस तैयार किये हैं। एक कोर्स जिसमें हमने दक्षता हासिल कर ली है भ्रष्टाचार का है। भ्रष्टाचार में हमारा नाम अग्रणी देशों में है। भ्रष्टाचार की अनेक विधियाँ हमारे देश में विकसित हो चुकी है। जनता ने मान लिया है कि अफसर की मुट्ठी गर्म किये बिना वैतरणी पार करना संभव नहीं है, इसीलिए दफ्तरों में अफसर को ढूँढ़ने के बजाय दलाल को ढूँढ़ा जाता है। कभी 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले पर हल्ला मचा था। अब हमारा स्तर इतना उठ चुका है कि कोई घोटाला हजार करोड़ से कम का नहीं होता। हज़ारों करोड़ से बने पुल उद्घाटन से पहले बैठ जाते हैं और किसी के माथे पर शिकन नहीं आती। पता नहीं ताजमहल और लाल किले जैसी इमारतें  चार पाँच सौ साल से कैसे खड़ी हैं। मेरा सुझाव है कि इन सभी इमारतों पर तत्काल बुलडोज़र चलवा देना चाहिए ताकि हमारे नेताओं और उच्च कुशलता-प्राप्त इंजीनियरों को शर्मिंदा न होना पड़े।

अब नीरव भाई, मेहुल भाई जैसे भले मानुस बैंकों का दस हज़ार करोड़ लेकर टहलते हुए विदेश चले जाते हैं और देश का आदमी यही हिसाब लगाता रह जाता है कि दस हज़ार करोड़ होते कितने हैं। पाँच दस करोड़ से ज़्यादा गिनने में दिमाग चक्कर खाने लगता है। इसलिए अब हमारा फर्ज़ बनता है कि अपने द्वारा अर्जित दक्षता का लाभ दूसरे देशों को दें। हम फ़िनलैंड, डेनमार्क, न्यूज़ीलैंड जैसे भ्रष्टाचार में पिछड़े देशों को भ्रष्टाचार के लाभ और उसके तरीकों से परिचित करा सकते हैं।

विश्वगुरू होने का दावा करने वाले हमारे देश में किसी भी विभाग के लिए परीक्षा लेना टेढ़ी खीर बना हुआ है क्योंकि परीक्षा से पहले पेपर लीक हो जाता है और लाखों परीक्षार्थियों की उम्मीदें धूल-धूसरित हो जाती हैं। परेशान छात्र बार बार सड़कों पर आ जाते हैं और फिर पुलिस तबियत से उन पर डंडे चलाती है।

एक और विद्या जो हमने विकसित की है चुनी हुई सरकार गिराने की है। अब हमारे पास यह हुनर है कि अल्पसंख्या वाली पार्टी बहुसंख्यक पार्टी को पटखनी देखकर रातोंरात अपनी सरकार बना ले और जनता इस चमत्कार को मुँह बाये देखती रह जाए। अब नेपोलियन की तरह हमारी पार्टियों के लिए कुछ भी असंभव नहीं रहा। अब बहुसंख्यक पार्टियों को भी चैन से बैठना और काम करना नसीब नहीं होता। टाँग खींचने की क्रिया निरंतर चलती रहती है।

हमने मिथ्याभाषण और पाखंड में महारत हासिल की है। हमारे यहाँ कोई पार्टी अपने चन्दे का स्रोत नहीं बताती। उसे सूचना के अधिकार से भी बाहर रखा गया है और इस पर सब पार्टियाँ सहमत हैं। आदमी अपनी आय छिपाये तो कानूनी कार्यवाही हो जायेगी, लेकिन पार्टियाँ इस चिन्ता से मुक्त हैं। जब सरकार गिराने का काम शुरू होता है तब पार्टियाँ,जनता को भगवान भरोसे छोड़कर, अपने सदस्यों को रेवड़ की तरह बसों में ढोकर कहीं दूर होटलों में बन्द कर देती हैं। पूछने पर बताया जाता है कि पिकनिक या हवा बदलने के लिए आये हैं। डर होता है कि सदस्य कहीं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर न चलने लग जाएँ। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जांसन को झूठ बोलने के कारण अपना पद छोड़ना पड़ा। यहाँ से कुछ टिप्स ले लेते तो शायद कुर्सी बचा ले जाते। यहाँ धर्मोपदेशक दूसरों को उपदेश देते देते बलात्कार या धोखाधड़ी के आरोप में जेल पहुँच जाते हैं।

एक और कला जिसमें हमने सिद्धि हासिल की है, धर्मों को लड़वाने की है। कहीं अमन हो,लोग बेवकूफी में शान्ति और भाईचारे से रह रहे हों तो हमारे विशेषज्ञ एक दिन में वहाँ की फिज़ाँ बदल सकते हैं। जो कल तक एक दूसरे के गले लगते थे, आज एक दूसरे का ग़रेबाँ थामने लगेंगे।

हमने हज़ारों साल के चिन्तन के बाद अपने यहाँ जातियों का अद्भुत ढाँचा तैयार किया है जो दुनिया के लिए मिसाल है। ऐसा सिस्टम आपको दुनिया के किसी देश में नहीं मिलेगा। इसमें खासियत यह है कि आदमी के दुनिया में पाँव या सिर रखते ही उसके भाग्य का निर्णय हो जाता है। उसके बाद फिर वह अगले जन्म में ही कुछ राहत पाने की उम्मीद कर सकता है। यानी हमारे यहाँ जन्म लेने और लॉटरी खुलने में ज़्यादा फर्क नहीं होता।

हमारे साधुओं-सन्यासियों ने धर्म के साथ धंधे और राजनीति को मिलाने का नया प्रयोग किया है, जो दुनिया सीख सकती है। अब संत कुंभनदास का कथन ‘संतन को कहाँ सीकरी सों काम’ बेमानी हो गया। अब के सन्यासी को माया से परहेज़ नहीं रहा। तुलसीदास की उक्ति ‘तपसी धनवंत, दरिद्र गृही’ चरितार्थ हो रही है।

बाबा लोग अध्यात्म के साथ दिन भर महिलाओं की त्वचा को कोमल और कमनीय बनाने के नुस्खे बता रहे हैं। बाबाओं की सिफारिश पर लोग विधायक और मंत्री बन रहे हैं। दुनिया से विरक्त सन्यासी और सन्यासिनें गांधी जी को गाली दे रहे हैं और उनके फोटो पर गोली चलाकर मिठाई बाँट रहे हैं। अध्यात्म में ऐसे प्रयोग हमारे देश में ही संभव हैं। जो अज्ञानी देश गांधी को पूजते हैं और उनकी प्रतिमा स्थापित करते हैं वे यहाँ हमारे साधुओं-साध्वियों के चरणों में बैठकर इस संबंध में ज़रूरी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यही हाल रहा तो कुछ दिन में बुद्ध की तरह गांधी भी ‘आन गाँव का सिद्ध’ हो जाएंगे। यही हमारे देश के समझदार लोग चाहते भी हैं क्योंकि ऊँचे उसूलों वाले गांधी अब हमारे देश में अंट नहीं रहे हैं।

हमसे सीखने की आखिरी बात यह कि हम कोई काम प्रभु की अनुमति के बिना नहीं करते। सरकार गिराते हैं तो गिराने के बाद मन्दिर जाकर प्रभु को धन्यवाद देते हैं। दलबदलू दल बदल कर सीधे प्रभु के दरबार में माथा टेकता है। जितनी बार दल बदलता है उतनी बार भक्तिभाव से प्रभु के दरबार में हाज़िर होता है। जो दिन भर ‘ऊपरी कमाई’ की फिक्र में रहते हैं वे भी एक घंटा पूजा किये बिना घर से नहीं निकलते, यानी ‘ऊपरी कमाई’ और ‘ऊपरवाले’ को एक साथ साधा जाता है।

लब्बोलुआब यह है कि हमारे पास दूसरे देशों को सिखाने के लिए बहुत कुछ है। आयें और अपनी झोली भर कर ले जाएँ। हमारे दरवाज़े सबके लिए खुले हैं। पहले आवे और पहले पावे के आधार पर इल्म का वितरण होगा। जहाँ तक इन पाठ्यक्रमों के शुल्क का सवाल है, वह ज्ञानार्थी के कान में बताया जाएगा, लेकिन उसे यह वचन देना होगा कि शुल्क संबंधी जानकारी पूर्णतया गोपनीय रखी जाएगी।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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