(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री रिंकल शर्मा जी की पुस्तक “प्रेम चंद मंच पर” पर पुस्तक चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 130 ☆
☆ “प्रेम चंद मंच पर” – सुश्री रिंकल शर्मा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆
प्रेम चंद मंच पर
रूपांतरण.. रिंकल शर्मा
कहानी नाट्य रूपांतर
प्रभाकर प्रकाशन दिल्ली
मूल्य १२५ रु
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल
बीसवीं सदी के आरंभिक वर्ष प्रेमचंद के रचना काल का समय था, किन्तु अपनी सहज अभिव्यक्ति की शैली तथा जन जीवन से जुडी कहानियों के चलते उनकी कहानियां आज भी प्रासंगिक बनी हुई हैं. प्रेमचंद के साहित्य की कापी राइट की कानूनी अवधि समाप्त हो जाने के बाद से निरंतर अनेकानेक प्रकाशक लगातार उनके उपन्यास और कहानियां बार बार विभिन्न संग्रहों में प्रकाशित करते रहे हैं.
कोई भी कथानक विभिन्न विधाओ में अभिव्यक्त किया जा सकता है. कविता में भाषाई चतुरता के साथ न्यूनतम शब्दों में त्वरित तथा संक्षिप्त वैचारिक संप्रेषण किया जाता है, तो कहानी में शब्द चित्र बनाकर सीमित पात्रों एवं परिवेश के वर्णन के संग किसी घटना का लोकव्यापीकरण होता है. ललित निबंध में अमिधा में रचनाकार अपने विचार रखता है. उपन्यास अनेक परस्पर संबंधित घटनाओ को पिरोकर लंबे समय की घटनाओ का निरूपण करता है. इसी तरह लघुकथा एक टविस्ट के साथ सीधा प्रहार करती है, तो व्यंग्य विसंगतियों पर लक्षणा में कटाक्ष करता है. नाटक वह विधा है जिसमें अभिनय, निर्देशन, दृश्य और संवाद मिलकर दर्शक पर दीर्घ जीवी मनोरंजक या शैक्षिक प्रभाव छोड़ते हैं. इन दिनों हिन्दी में ज्यादा नाटक नहीं लिखे जा रहे हैं. फिल्मो ने नाटको को विस्थापित कर दिया है.
ऐसे समय में रिंकल शर्मा ने “प्रेम चंद मंच पर ” में मुंशी प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध कहानियों पंच परमेश्वर, नादान दोस्त, गुल्ली डंडा और कजाकी के नाट्य रुपांतरण प्रस्तुत कर अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किया है. इससे पहले भी कई प्रसिद्ध रचनाओ के नाट्य रूपांतरण किये गये हैं, हरिशंकर परसाई की रचना मातादीन चांद पर के नाट्य रूपांतरण के बाद जब उसका मंचन जगह जगह हुआ तो वह दर्शको द्वारा बेहद सराहा गया. केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास कोहबर की शर्त पर फिल्म नदिया के पार भीष्म साहनी की रचना तमस पर, अमृता प्रीतम के उपन्यास पिंजर पर आधारित ग़दर एक प्रेम कथा, धर्मवीर भारती के गुनाहों का देवता और सूरज का सातवां घोड़ा, स्वयं मुंशी प्रेमचंद जी के ही उपन्यासों गोदान, सेवासदन, और गबन पर भी फिल्में बन चुकी हैं.
किसी कहानी का केंद्र बिंदु एक कथानक होता है, पात्र होते हैं, परिवेश का किंचित वर्णन होता है, कहानी में एक उद्देश्य निहित होता है जो कहानी का चरमोत्कर्ष होता है. पात्रों के माध्यम से लेखक इस उद्देश्य को पाठको तक पहुंचाता है. नाटक की कहानी से यह समानता होती है कि नाटक में भी एक कहानी होती है, नाटक में संवाद होते हैं, पात्रों के मध्य द्वंद्व होता है. नाटक के पात्र संवादों को प्रभावशाली बना कर दर्शक तक अधिक उद्देशयपूर्ण बनाने की क्षमता रखते हैं.
किसी कहानी का नाट्य रूपांतरण करने के लिये कहानीकार की मूल भावना को समझकर बिना कहानी के मूल आशय को बदले संवाद लेखन सबसे महत्वपूर्ण पहलू होता है. जब मुझे रिंकल जी ने समीक्षा के लिये यह पुस्तक भेजी तो मैंने सर्वप्रथम अपनी बहुत पहले पढ़ी गई मुंशी प्रेमचंद की चारों कहानियों पंच परमेश्वर, नादान दोस्त, गुल्ली डंडा और कजाकी को उनके मूल रूप में फिर से पढ़ा, उसके बाद जब मैंने यह नाट्य रूपांतर पढ़ा तो मैंने पाया है कि रिंकल शर्मा ने इन चारों कहानियों के नाट्य रूपांतर में संवाद लेखन का दायित्व बड़े कौशल से निभाया है चूंकि वे स्वयं नाट्य निर्देशिका हैं अतः वे यह कार्य सुगमता पूर्वक कर सकी हैं. अत्यंत छोटे छोटे वाक्यों में संवाद लिखे गये हैं, इससे किशोर वय के बच्चे भी ये रूपातरित नाटक अपने स्कूलों के मंच पर प्रस्तुत कर सकेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है. मैं इस साहित्यिक सुकृत्य हेतु लेखिका, कवियत्री और स्तंभ लेखिका रिंकल शर्मा की सराहना करता हूं.
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈