सुश्री अनुभा श्रीवास्तव
(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “संवाद संजीवनी है”। इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने # 27 ☆
☆ संवाद संजीवनी है☆
घर, कार्यालय हर रिश्ते में सीधे संवाद की भूमिका अति महत्वपूर्ण है संवादहीनता सदा कपोलकल्पित भ्रम व दूरियां तथा समस्यायें उत्पन्न करती है. वर्तमान युग मोबाइल का है, अपनो से पल पल का सतत संपर्क व संवाद हजारो किलोमीटर की दूरियों को भी मिता देता है. जहां कार्यालयीन रिश्तों में फीडबैक व खुले संवाद से विश्वास व अपनापन बढ़ता है वहीं व्यर्थ की कानाफूसी तथा चुगली से मुक्ति मिलती हे. इसी तरह घरेलू व व्यैक्तिक रिश्तो में लगातार संवाद से खुलापन आता है, परस्पर प्रगाढ़ता बढ़ती है, रिश्तों की गरमाहट बनी रहती है, खुशियां बांटने से बढ़ती ही हैं और दुःख बांटने से कम होता है. कठनाईयां मिटती हें. बेवजह ईगो पाइंट्स बनाकर संवाद से बचना सदैव अहितकारी है.
प्रधानमंत्री मोदी जी ने संवाद के महत्व को समझा व उसे अपनाया है. वे आम जनता से सीधा संवाद मन की बात के जरिये करते हैं यह अभिनव प्रयोग है. विभिन्न कंपनी प्रमुख मैनेजमेंट के इस गुर को अपनाते हैं व अपनी कंपनी के कर्मचारियो में सर्क्युलेशन के लिये आंतरिक पत्रिका आदि प्रकाशित करते हैं. यद्यपि संवाद द्विपक्षीय होना चाहिये, इंटरनेट ने बिना सामने आये द्विपक्षीय संवाद को सरलता से संभव बना दिया है. फीडबैक की व्यवस्था वेबसाइट में की जा सकती है. आवश्यक है कि प्रत्युत्तर में प्राप्त फीड बैक को संज्ञान में लिया जावे व उन पर कार्यवाही हो जिससे परस्पर विश्वास का वातावरण बन सके.
आज प्रायः बच्चे घरों से दूर शिक्षा पा रहे हैं उनसे निरंतर संवाद बनाये रख कर हम उनके पास बने रह सकते हैं व उनके पेरेण्ट्स होने के साथ साथ उनके बैस्ट फ्रैण्ड भी साबित हो सकते हैं. डाइनिंग टेबल पर जब डिनर में घर के सभी सदस्य इकट्ठे होते हैं तो दिन भर की गतिविधियो पर संवाद घर की परंपरा बनानी चाहिये. यदि सीता जी के पास मोबाईल जैसा संवाद का साधन होता तो शायद राम रावण युद्ध की आवश्यकता ही न पड़ती और सीता जी की खोज में भगवान राम को जंगल जंल भटकना न पड़ता. विज्ञान ने हमें संवाद के संचार के नये नये संसाधन मोबाईल, ईमेल, फोन, सामाजिक नेटवर्किंग साइट्स आदि के माध्यम से सुलभ कराये हैं, पर रिश्तो के हित में उनका समुचित दोहन हमारे ही हाथों में है.
© अनुभा श्रीवास्तव