डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण गीत – शब्द, अब नहीं रहे शब्द…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 129 – शब्द, अब नहीं रहे शब्द…
शब्द, अब नहीं रहे शब्द
शब्द को ब्रह्म कहा गया है
और
ब्रह्म को देखा नहीं किसी ने
शब्द को भी
कोई कहाँ देख पाता है।
हाँ,
सुन पाता है उसे
अगर सुनना चाहे तो।
मगर क्या होता है
मात्र सुनने से
जबकि अर्थहीन हो गए हों शब्द
लगता है
शब्दों की केंचुली उतर गई है
बदल गई है उनकी तासीर
अब प्रेम शब्द ना तो स्निग्धा देता है
ना ऊर्जा
और विश्वास का दावा
कानों में उड़ेल देता है
पिघला शीशा
संबोधन के सारे शब्दों से
सड़ी मछली की बू आने लगी है
शब्द, अब शब्द नहीं रहे…।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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