(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय व्यंग्य – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन।)
व्यंग्य – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन –
विश्व पुस्तक मेले का हाल नंबर 2 हिंदी प्रकाशकों के स्टॉल्स से भरा हुआ है। प्रत्येक प्रकाशक के पास कविता के बाद संभवतः व्यंग्य की ही सर्वाधिक पुस्तकें हों, संकलन या व्यक्तिगत किताबें खूब छप रही हैं। आई एस बी एन सहित और बिना इसके भी। अनेक ओहदों वाले जिनके पास समय ही नहीं, वे भी रातों रात बड़े लेखक बने दिखते हैं।
मेरे पास एक प्रकाशक का प्रस्ताव आया था की मैं कोई सौ पृष्ठ व्यंग्य भेज दूं और राशि ले लूं, घोस्ट राइटर के रूप में। अर्थात व्यंग्यकार के रूप में खुद को स्थापित करने की चाहत रखने वाले हैं, जो बडी राशि देकर घोस्ट राईटिंग खरीद रहे हैं। ठीक हो सकता है कि ऐसा लेखन जो महज रुपयों या नाम हेतु हो साहित्य की शास्त्रीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।
अन्यथा किसी भी विधा की लोकप्रियता उसे बढ़ाती ही है नुकसान नहीं पहुंचाती।
क्रिकेट का उदाहरण सर्वाधिक सरल है उसकी बढ़ती लोकप्रियता ने नए फार्मेट लाए, खिलाड़ियों को शोहरत और रुपए दिलवाए, किंतु क्रिकेट तो क्रिकेट ही है उसे नुकसान नहीं पहुंचा। टेस्ट मैच की शास्त्रीयता अपनी जगह है ही। इसी तरह साहित्य यदि मौलिक है तो जितना अधिक लिखा जाए, बेहतर ही होगा।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
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