प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक गावव ग़ज़ल – “देश को जो नई दिशा दे वह जवानी चाहिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #122 ☆ गजल – “देश को जो नई दिशा दे वह जवानी चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
हंसी खुशियों से सजी हुई जिन्दगानी चाहिये
सबको जो अच्छी लगे ऐसी रवानी चाहिये।
समय के संग बदल जाता सभी कुछ संसार में
जो न बदले, याद को ऐसी निशानी चाहिये।
आत्मनिर्भर हो न जो, वह भी भला क्या जिंदगी
न किसी का सहारा, न मेहरबानी चाहिये।
हो भले काँटों तथा उलझन भरी पगडंडियां
जो न भटकायें वही राहें सुहानी चाहिये
नजरे हो आकाश पर पैर धरती पर रहें
हमेशा हर सोच में यह सावधानी चाहिये।
हर नए दिन नई प्रगति की मन करे कामना
निगाहों में किन्तु मर्यादा का पानी चाहिये।
जहां मिलते है उड़ानों को नये-नये रास्ते
सद्विचारों की सुखद वह निगहबानी चाहिये।
बांटती हो जहां सबको खुशबू ममता प्यार की
भावना को वह महकती रातरानी चाहिये।
हर अंधेरी रात में जो चमक पथ की खोज ले
बुद्धि की वह कौंध बिजली आसमानी चाहियें।
मन ’विदग्ध’ विशाल हो औ’ हो समन्वित भावना
देश को जो नई दिशा दे वह जवानी चाहिये।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈