सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “विसाल”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 20 ☆
ज़ाफ़रानी* शामों में
मैं जब भी घूमा करती थी
नीली नदी के किनारे,
नज़र पड़ ही जाती थी
उस बेक़रार से दरख़्त पर
और उस कभी न मानने वाली
बेल पर!
आज अचानक देखा
कि पहुँचने लगी है वो बेल
उस नीली नदी किनारे खड़े
अमलतास के
उम्मीद भरे पीले दरख़्त पर,
एहसास की धारा बनकर|
शायद
वो खामोश रहती होगी,
पर अपनी चौकन्नी आँखों से
देखती रहती होगी
उस दरख़्त के ज़हन के उतार-चढ़ाव,
महसूस किया करती होगी
उस दरख़्त की बेताबी,
समझती होगी
उस दरख़्त की बेइंतेहा मुहब्बत को…
एक दिन
बेल के जिगर में भी
तलातुम** आना ही था,
और आज की शाम वो
अब बिना किसी बंदिश के
बह चली है
एहसास की धारा बनकर
विसाल*** के लिए!
*ज़ाफ़रानी = saffron
**तलातुम = waves
***विसाल = to meet
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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