श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है …”।)
ग़ज़ल # 67 – “अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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किस तरफ़ जा रही नई नस्ल भटक कर,
कब्र में अश्क़ बहाती मरियम सुबक कर।
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तकता मुझे कौन मुहब्बत भरी नज़र से,
किसने मुझे देखा खिड़की से दुबक कर।
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भूचाल सा आया है फिर कोई मेरे अंदर,
निकले मुँह से ग़लत लफ़्ज़ अटक कर।
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होने लगा जब शोर ज्यादा मेरे अंदर,
मैं ख़ुद से बहुत दूर जा बैठा छिटक कर।
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अक्सर ही चराग़ों ने जलाया है मेरा दिल,
आतिश देखा जाएगा चाँद से चिपक कर।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈