श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 74 – मनोज के दोहे… ☆

1 क्षितिज

क्षितिज नापने उड़ चला, पंछी नित ही भोर।

शाम देख फिर आ गया, सुनने कलरव शोर ।।

वायुयान में बैठ कर, उड़े कनाडा देश।

अंतहीन इस क्षितिज का, समझ न पाया वेश।।

2 भूषित

धरा वि-भूषित वृक्ष से, करती है शृँगार।

प्राणवायु देती सुखद, जीवन हर्ष अपार ।।

भूषित प्रकृति संपदा, दर्शन का उन्मेश ।

पर्यटक आते देखने, मिटते मन के क्लेश।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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