(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने …।)
कविता – बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने … –
थाम कर , बच्चे सा मुझको
बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने
ओढ़ ली सारी जिम्मेदारी
बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने
पिरो कर माला में रिश्ते
सहकर खुद अकेले सब
बना कर बच्चे नव रत्नी
बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने
उठा कर बोझ सब हँस कर
रोशन कर के घर भर को
हर मुश्किल को कर आसां
बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने
भला लाऊं मैं क्या तोहफा
तुम खुद मेरा तोहफा हो
आई तुम जबसे जीवन में
बड़ा बेफिक्र कर दिया तुमने
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
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