श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी का हार्दिक स्वागत है। आज से आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “बेबस पड़े हैं…”।)
जीवन परिचय
जन्म : 09 मई 1951 ई0। नरसिंहपुर मध्यप्रदेश।
शिक्षा : हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर
प्रकाशित कृतियाँ : (1) ‘मन का साकेत’ गीत नवगीत संग्रह 2012 (2) ‘परिन्दे संवेदना के’ गीत नवगीत संग्रह 2015 (3) “शब्द वर्तमान” नवगीत संग्रह 2018 (4) ”रेत हुआ दिन” नवगीत संग्रह 2020 (5)”बीच बहस में” समकालीन कविताएँ 2021 (6) महाकौशल प्रान्तर की 100 प्रतिनिधि रचनाएँ संपादन ‘श्यामनारायण मिश्र’ समवेत संकलन (7) समकालीन गीतकोश-संपादन- नचिकेता (8)नवगीत का मानवतावाद-संपादन-राधेश्याम बंधु
अन्य प्रकाशन : देश के स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में गीत, नवगीत, अनुगीत कविताओं का सतत् प्रकाशन।
सम्मान : (1) कला मंदिर भोपाल पवैया पुरस्कार (2) कादंबरी संस्था जबलपुर से सम्मानित
संप्रति : स्नातक शिक्षक केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा निवृत, स्वतंत्र लेखन।
जय प्रकाश के नवगीत # 01 ☆ बेबस पड़े हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
भीड़ से हटकर खड़े हैं
तभी तो आँखों में उनकी
किरकिरी बनकर गड़े हैं।
वक़्त की दीवार पर चढ़
रेत में नैया डुबाते
मिल न पाया कोई मोती
दाँव पर जीवन लगाते
बस नदी के घाव धोते
घाट पर बेबस पड़े हैं ।
हो गई संवेदनाएँ
जहर में डूबी ज़ुबान
मुखर हैं अख़बार में
लड़खड़ाते से बयान
आस्थाएँ हुईं मैली
सच के मुँह ताले जड़े हैं।
खेत माटी और चिड़िया
भुखमरी झूठे सवाल
सिसकियों के घर अँधेरा
रोशनी पर है बवाल
रोज सूरज के भरोसे
रात से हरदम लड़े हैं।
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈