श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 25☆

☆ क्रिकेट दर्शन-जीवन दर्शन ☆

(हाल  ही में भारत ने वेस्टइंडीज से टी-20 क्रिकेट शृंखला जीती है। इसी परिप्रेक्ष्य में टी-20 और जीवन के अंतर्सम्बंध पर टिप्पणी करती *संजय उवाच* की इस कड़ी का पुनर्स्मरण हो आया। मित्रों के साथ साझा कर रहा हूँ।)

जीवन एक अर्थ में टी-20 क्रिकेट ही है। इच्छाओं की गेंदबाजी पर दायित्व बल्ला चला रहा है। अंपायरिंग करता काल सनद्ध है कि जरा-सी गलती हो और मर्त्यलोक का एक और विकेट लपका जाए। दुर्घटना, निराशा, अवसाद, आत्महत्या, हत्या आदि क्षेत्ररक्षण कर रहे हैं। मारकेश की वक्र-दृष्टि-सी विकेटकीपिंग, बोल्ड, कैच, रन आउट, स्टम्पिंग, एल.बी.डब्ल्यू., हिट-विकेट…,अकेला जीव, सब तरफ से घिरा हुआ जीवन के संग्राम में!

महाभारत में उतरना हरेक के बस का नहीं होता। तुम अभिमन्यु हो अपने समय के। जन्म और मरण के चक्रव्यूह को बेध भी सकते हो, छेद भी सकते हो। अपने लक्ष्य को समझो, निर्धारित करो। उसके अनुरूप नीति बनाओ और क्रियान्वित करो। कई बार ‘इतनी जल्दी क्या पड़ी, अभी तो खेलेंगे बरसों’ के चक्कर में 15वें-16वें ओवर तक अपेक्षित रन-रेट इतनी अधिक हो जाती है कि अकाल विकेट देने के सिवा कोई चारा नहीं बचता।

परिवार, मित्र, हितैषियों के साथ सच्ची और लक्ष्यबेधी साझेदारी करना सीखो। लक्ष्य तक पहुँचे या नहीं, यह स्कोरबोर्डरूपी समय तय करेगा। तुम रिस्क लो, रन बटोरो, रन-रेट अपने नियंत्रण में रखो। आवश्यक नहीं कि पूरे 20 ओवर खेल सको पर अंतिम गेंद तक खेलने का यत्न तो कर ही सकते हो न!

यह जो कुछ कहा गया, स्ट्रैटेजिक टाइम आऊट’ में किया गया दिशा-निर्देश भर है। चाहे तो विचार करो और तदनुरूप व्यवहार करो अन्यथा गेंदबाज, क्षेत्ररक्षक और अंपायर तो तैयार हैं ही!

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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Rita Singh

मैदानी खेल के साथ जीवन का तालमेल ……सुंदर तुलनात्मक अध्ययन विभाग समीक्षा।
बहुत खूब!!