श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समय है भारी…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 02 ☆ समय है भारी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
बहुत भीतर तक
समंदर हुआ दूषित
मछलियों पर समय है भारी।
किनारों पर बैठकर
रोती लहर है
ज्वार भाटे से डरा
सारा शहर है
हवाओं के नम
हुए चेहरे प्रकंपित
झलकती हर ओर लाचारी।
मनुजता की लाश पर
गिद्ध मँडराते
तटों पर की साजिशें
जलयान थर्राते
यात्रा के पाँव
ठहरे से अचंभित
मंजिलों के ठाँव सरकारी।
गुंबदों वाले महल
हैं नाम जिनके
नदी मुड़ती है वहीं
हर घाट जिनके
धार है मँझधार
जल सारा प्रदूषित
नाव ढोती व्यथाएँ सारी।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈