प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “हनुमान स्तुति…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #126 ☆ “हनुमान स्तुति…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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संकट मोचन दुख भंजन हनुमान तुम्हारी जय होवे
बल बुद्धि शक्ति साहस श्रम के अभिमान तुम्हारी जय होवे
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दुनिया के माया मोह जाल में फंसे सिसकते प्राणों को
मिलती तुमसे नई चेतनता और गति निश्छल पाषाण को
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दुख में डूबे जग से ऊबे हम शरण तुम्हारी हैं भगवन
संकट में तुमसे संरक्षण पाने को आतुर है यह मन
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तुम दुखहर्ता नित सुखकर्ता अभिराम तुम्हारी जय होवे
हे करुणा के आगार सतत निष्काम तुम्हारी जय होवे
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सर्वत्र गम्य, सर्वज्ञ , सर्वसाधक प्रभु अंतर्यामी तुम
जिस ने जब मन से याद किया आए उसके बन स्वामी तुम
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देता सबको आनंद नवल निज नाथ तुम्हारा संकीर्तन
होता इससे ही ग्राम नगर हर घर में तव वंदन अर्चन
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संकट कट जाते लेते ही तव नाम तुम्हारी जय होवे
तव चरणों में मिलता मन को विश्राम तुम्हारी जय होवे
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संतप्त वेदनाओ से मन उलझन में सुलझी आस लिए
गीले नैनों में स्वप्न लिए, अंतर में गहरी प्यास लिए
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आतुर है दृढ़ विश्वास लिए, हे नाथ कृपा हम पर कीजे
इस जग की भूल भुलैया में पथ खोज सकें यह वर दीजे
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हम संसारी तुम दुख हारी भगवान तुम्हारी जय होवे
राम भक्त शिव अवतारी हनुमान तुम्हारी जय होवे
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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