डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना– दरपन दरपन रूप तुम्हारा…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 134 – दरपन दरपन रूप तुम्हारा…
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दरपन दरपन रूप तुम्हारा
मुखड़ा देखूँ किस दरपन में
एक बूँद धरती पर आई
दो दिन करने पहुनाई
कटा एक दिन शूलवनों में
और एक दिन अमराई
होंठ आचमन कैसे करलें
टँकी बदरिया नीलगगन में।
सागर से गागर शरमाई
माँग रहा है भरपाई
जीवन था रामायन लेकिन
बँची न बाँचे चौपाई।
राम रूप में रत्ना ही तो
बैठी थी तुलसी के मन मे।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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