श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “चेतना की शक्ति…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 144 ☆

☆ चेतना की शक्ति ☆

हमको अपनी अप लाइन को मजबूत रखना चाहिए। डाउन लाइन बदलती रहेगी क्योंकि उसके अंदर स्थायित्व का अभाव होता है। थोड़े से मानसिक दबाब को वो आत्मसम्मान का मुद्दा बनाकर कार्य छोड़ देते हैं, जबकि ऊपरी स्तर पर बैठे पदाधिकारी समस्याओं को चैलेंज मानकर उनका हल ढूढ़ते हैं।

चेतना के स्तर को बढ़ाने के लिए अच्छी संगत होनी चाहिए। संगत की रंगत तो जग जाहिर है। सत्संग से अच्छा वातावरण निर्मित होता है। वैचारिक रूप से समृद्ध व्यक्ति निरन्तर अपने कार्यों में जुटे रहते हैं। हमारे आसपास आपको बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जो सुखीराम का मंत्र अपनाते हुए जीवन व्यतीत करते जा रहे हैं। सुखीराम जी का मूलमंत्र यही था कि आराम से कार्य करो। अब समस्या ये थी कि काम कैसे हो…? जहाँ आराम मिला वहाँ आलस आ धमकता बस कार्य में बाधा आती जाती है।  एक व्यक्ति जो नियमित रूप से कुछ न कुछ करता रहेगा वो अवश्य ही मंजिल को पा लेगा लेकिन जो शुरुआत जोर – शोर से करेगा फिर राह बदल कर दूसरी दिशा में चल देगा वो कैसे विजेता बन सकता है।

Late और latest में केवल st का ही अंतर होता है किंतु एक देरी को दर्शाता है तो दूसरा नवीनता को दोनों परस्पर विरोधी अर्थ रखते हुए भी words में समानता रखते हैं अर्थात केवल सच्चे मन से कार्य करते रहें अवश्य ही सब कुछ मुट्ठी में होगा। प्राकृतिक परिवेश से जुड़े हुए लोग  आसानी से समस्याओं को हल करते जाते हैं, उनके साथ ब्रह्मांड की शक्ति जो जुड़ जाती है। यही कारण है कि हम प्रकृतिमयी वातावरण से जुड़कर प्रसन्न होते हैं।

अभी भी समय है चेत जाइये और कुछ न कुछ सार्थक करें, ठग बंधन से अच्छा ऐसा गठबंधन होना चाहिए जो शिखर पर स्थापित होने का दम खम रखता हो।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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