सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… का अगला भाग )
मेरी डायरी के पन्ने से… स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को… भाग – 3
(2015 अक्टोबर – इस साल हमने स्पेन, पुर्तगाल और मोरक्को घूमने का कार्यक्रम बनाया। पिछले भाग में आपने पुर्तगाल यात्रा वृत्तांत पढ़ा। )
यात्रा वृत्तांत (स्पेन से जिबरॉल्टर) – भाग तीन
मलागा में चार दिन बिताने के बाद हम तीन दिन के लिए मोरक्को जानेवाले थे परंतु वहाँ उन दिनों राजनैतिक उथल-पुथल प्रारंभ हो गई थी। कुछ बम विस्फोट की भी खबरें मिली, इसलिए हमने वहाँ जाने का कार्यक्रम स्थगित किया। हमारी सारी बुकिंग कैंसल की गई,आर्थिक नुकसान हुआ पर कहते हैं न जान बची लाखों पाए -हमारे लिए उस समय यह निर्णय आवश्यक था। यह मुस्लिम बाहुल्य देश है। यहाँ ईसाई भी हैं पर माइनॉरिटी में और दो धर्मों के बीच कुछ विवाद छिड़े हुए थे।अतः इस उथल -पुथल में हमने मोरक्को न जाने का फैसला लिया। हमने रिसोर्ट में तीन दिन अधिक रहने के लिए व्यवस्था की। सौभाग्य से हमें जगह मिल गई ।अब हमारे पास तीन दिन हाथ में अधिक आ गए थे। हमने मलागा में रहकर कुछ और जगहें देखने का मन बना लिया।
कनाडा की शिक्षिकाओं ने दूसरे दिन जिबरॉल्टर जाने का कार्यक्रम बनाया था। इस स्थान की जानकारी मुझे उन दिनों हुई थी जब मैं अपने नाती को इतिहास पढ़ाते समय द्वितीय विश्वयुद्ध की जानकारी दे रही थी। इससे पूर्व मुझे इस स्थान की कोई जानकारी न थी। हमारा नाती तो जिबरॉल्टर जाने की बात सुनकर उछल पड़ा। हमने अपने रिसोर्ट के ग्रंथालय से जिबरॉल्टर की और अधिक ऐतिहासिक जानकारी हासिल की और ट्रैवेल डेस्क पर बैठे एजेंट से जाने की व्यवस्था भी की।
हमारे पास शैंगेन वीज़ा थी। जिबरॉल्टर यू.के. के अधीन आता है। वहाँ शैंगेन वीज़ा नहीं चलता। पर हमारी तकदीर अच्छी थी कि ट्रैवेल एजेंट ने बताया कि हमारी यात्रा के छह दिन पूर्व ही यह घोषणा की गई थी कि भारतीय जिबरॉल्टर पहुँचकर वीज़ा प्राप्त कर सकते हैं।
अठारह लोगों की बस में तीन सीटें मिल ही गईं और दूसरे दिन सुबह हम सात बजे जिबरॉल्टर के लिए रवाना हुए।
गाड़ी में हम तीन ही एशियाई और वह भी भारतीय थे। इससे पूर्व सभी एशियाई देशों को पहले से वीज़ा लेने की आवश्यकता होती रही है। अब यह बाध्यता का समाप्त होना अर्थात भारत के साथ स्पेन के सुदृढ़ आपसी संबंधों पर प्रकाश डालता है।
मलागा से जिबरॉल्टर की दूरी 135 किलोमीटर है। जिबरॉल्टर समुद्री तट पर बसा छोटा सा शहर है। जिबरॉल्टर छोटा सा शहर तो है पर साथ ही, यह ब्रिटेन के सशस्त्र सैनिकों और नौसेना का एक सशक्त आधार भी है। यह चट्टानी प्रायद्वीप से घिरा इलाका है साथ ही यहाँ कई गुफाएँ भी हैं।
यह पृथ्वी का एक ऐसा एयरप्लेन रनवे है जहाँ गाड़ियाँ और विमान दोनों ही चलते हुए दिखाई देते हैं। यात्रा के दौरान अचानक हमारी बस रुक गई और सामने ही विमान चलता दिखाई दिया। कुछ समय बाद विमान हमारे सिर के ऊपर से उड़ता दिखाई दिया। हमारे लिए यह एक अद्भुत अनुभव था!
हम अपनी छोटी-सी बस से जिबरॉल्टर पहुँचे। फिर वहाँ से आगे गुफाओं में जाने के लिए वहाँ की निर्धारित बसों में बैठकर हम ऊपरी गुफाओं में पहुँचे। ये संकरी और घुमावदार पहाड़ी रास्तों से गुजरती सड़कों पर की गई अद्भुत यात्रा थी। बस में लगी काँच की खिड़कियाँ बहुत बड़े आकार थीं जिस कारण मार्ग के आगे, पीछे, ऊपर ,नीचे की सड़कें स्पष्ट नज़र आ रही थी।
जैसे बस ऊपर चढ़ती सड़क संकरी महसूस होने लगती। एक भय भी मन में घर करता रहा। हम सबकी हालत देख गाइड ने तुरंत कहा कि सड़क घुमावदार,संकरी और चढ़ाईवाली होने के कारण ही विशेष प्रशिक्षित चालकों के साथ यात्रियों को वहाँ ले जाया जाता है। वहाँ गाड़ी या बस चलाना सबके बस की बात नहीं। एकबार में एक ही बस ऊपर जाती है। दो घंटे गाइड के साथ गुफाएँ देखकर बस नीचे उतरती है और तब दूसरी बस रवाना होती है।बस चालक ही गाइड के रूप में काम करता है। इस कारण प्रत्येक ट्रिप में अलग चालक होते हैं। चालक का गाइड होना अर्थात उस स्थान के प्रति लगाव, समर्पण की भावना भी जुड़ी रहती है।
बसें ऑटोमोटिक होती हैं और समय का पूरा ध्यान रखा जाता है। दूसरी बस प्रस्थान के लिए नीचे यात्रियों के साथ तैयार रहती है। इतना परफेक्ट समय की पाबंदी और अनुशासन देखकर यात्री होने के नाते हमारा मन अत्यंत प्रसन्न हो उठा।
ऊपर गुफाओं में हमें घुमाया गया।यहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के समय तकरीबन बीस हज़ार लोग रहते थे।बच्चों के लिए छोटा सा स्कूल बनाया गया था ताकि उन्हें युद्ध के भय से दूर रखा जाए तथा वे व्यस्त रहें। बेकरी थी। सैनिकों के सोने के लिए लोहे के बेड रखे गए थे। दिन में कुछ युद्ध करते तो कुछ सोते और रात को कुछ तैनात रहते तो दिन में ड्यूटी करनेवाली सेना आराम करती। गुफाएँ काफी गहरी थीं। कुछ गुफाओं में आज भी सैनिक रहते हैं।
गाइड ने हमें यह भी बताया कि जिबरॉल्टर में बड़ी संख्या में सिंधी भाषी रहते हैं।ये लोग आज के पाकिस्तान के सिंध इलाका से व्यापार करने के लिए गए थे तब भारत का विभाजन नहीं हुआ था। और आज भी वे वहीं बसे हैं।वहाँ हिंदू मंदिर भी है।
कई अच्छी जानकारी और ऐतिहासिक स्थान देखकर हम मलागा लौट आए।
आज स्पेन के विभिन्न शहरों में भी बड़ी संख्या में सिंधी व्यापारी वर्ग रहता है।
सभी स्थानों पर भारतीयों का बोलबाला और सम्मान देखकर मन गदगद हो उठा।
हमारी यह यात्रा सुखद, जानकारी पूर्ण और आनंददायी रही। ढेर सारे अनुभवों के साथ हम अपने नाती के साथ स्वदेश लौट आए।
© सुश्री ऋता सिंह
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