डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे …”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 177 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे … ☆
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कस्तूरी
कस्तूरी कुंडल बसे, ढूँढे मृग चहुँ ओर।
भटक भटक के खोजता, आता वापस छोर।।
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खेत
बीजारोपण कर रहा, खेतों खेत किसान।
खुश होकर वह झूमता,फसल देखता धान।।
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दृष्टि
देख रहे हैं वो हमें, दृष्टि है इसी ओर।
समझ रहे हैं हम उसे, बंधी प्यार की डोर।।
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कबूतर
संदेशा कबूतर से, भेजा अपना प्यार ।
आएगा अब एक दिन, प्यार का इजहार।।
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आम
झूम झूमकर गिर रहे, मीठे मीठे आम।
भिन्न भिन्न हैं जातियाँ, लगड़ा प्रिय बदाम।।
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© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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