श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…”।)
ग़ज़ल # 72 – “तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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तू चाहता क्या और माँगता क्या है,
तू सच बता आख़िर चाहता क्या है।
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उड़ चुका बहुत ख्वाहिशी फ़लक पर
अब रुक जा बेवज़ह उड़ता क्या है।
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तेरी बेवफ़ाई के क़िस्से बहुत मशहूर,
बता तेरा मुहब्बत से वास्ता क्या है।
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दराज खुला रखा लिफ़ाफ़ों के लिए,
तेरे हुजूम में वसूली हफ़्ता क्या है।
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दिल में तेरे अभी भी जमा है मैल,
दूसरों के दिलों में झांकता क्या है।
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तूने किया वही जो चाहा ताज़िंदगी,
तू बता तुझे अब सालता क्या है।
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तू ज़िंदगी भर सजता संवरता रहा,
तेरी पत्तल में फैला रायता क्या है।
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आ जकड़ा तुझे फ़ानी अहसासात ने,
मंज़ूर कर फ़ना अब भागता क्या है।
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आतिश की असलियत सब जानते हैं,
फिर तू बेसिरपैर की हाँकता क्या है।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈