श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है  एक भावप्रवण एवं विचारणीय सजल “चलो अब मौन हो जायें…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 75 – गीत – ज्ञान का दीपक जलाकर…

ज्ञान का दीपक जलाकर,

तिमिर से हम मुक्ति पाएँ।

गीत हम सद्भावना के,

आइए मिल गुनगुनाएँ ।

 

सृजन के प्रहरी बने सब,

प्रगति की हम धुन सजाएँ।

देश में उत्साह भरकर,

नव सृजन का जश्न गाएँ।

 

सूर्य जैसा दमक सके न,

पछताना न इस बात पर।

जग मगाना सीख लेना,

लघु-दीपकों से रात-भर ।

 

खुश रहे इस देश में सब,

दर्द कोई छू न जाए।

द्वार में दीपक रखें मिल,

रूठने कोई न पाए।

 

बेबसों के अश्रु पौछें,

साथ में उनके खड़े हों।

लड़खड़ाते चल रहे जो,

दें सहारा तब बड़े हों ।

 

यदि भटक जाए पथिक तो,

मार्ग-दर्शक बन दिखाएँ।

हो सके तो मंजिलों तक,

राह निष्कंटक बनाएँ।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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