श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका कीhttps://www.e-abhivyakti.com/wp-admin/post.php?post=53412&action=edit# प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “श्रद्धा लभते ज्ञानम्…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 146 ☆

☆ श्रद्धा लभते ज्ञानम्

जब कोई वस्तु या व्यक्ति हमारी कल्पना के अनुरूप होता है, तो अनायास ही उसकी हम उसकी ओर आकर्षित होने लगते हैं। मानव की यह प्रवृत्ति तब घातक सिद्ध होने लगती है,जब यह एक तरफा होकर, जुनून की हद तक बढ़ जाए, इस समय मनुष्य, विवेक से अंधा होकर सही गलत का फर्क भूल जाता है और मन में वांछित पाने की चाहत और बलवती हो जाती है।

वनवास के दौरान माता सीता भी स्वर्ण मृग के प्रति आकर्षित हुईं जबकि वो ये जानती थीं कि ऐसा होना संभव नहीं है और तो और भगवान श्री राम भी उनकी इच्छा पूरी करने के लिए चल दिये। ये सब आकर्षण का माया जाल है जिसके प्रभाव से बड़े – बड़े संत महात्मा भी नहीं बच सके।

लगभग सभी जीव जंतु स्नेह की भाषा समझते हैं। खासकर मनुष्य जो ईश्वर की अनुपम कृति है वो हमेशा सुखद वातावरण ही चाहता है। ये बात अलग है कुछ लोग परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देते हैं तो वहीं कुछ संघर्ष कर विजेता के रूप में सबके प्रेरक बनते हैं। कहा जाता है- श्रद्धा लभते ज्ञानम्। सही है जब हमारी  सोच विकसित होगी तभी श्रद्धा, विश्वास और धैर्य पनपेंगे। क्या आपने कभी सोचा कि हममें से अधिकांश लोग सकारात्मक पोस्ट ही क्यों पढ़ते हैं व शेयर करते हैं ?

 कारण साफ है, हर व्यक्ति मानसिक सुकून चाहता है। जैसी संगत होगी वैसा ही हमारा स्वभाव बनने लगता है अतः केवल अच्छाई से जुड़ते हुए आगे बढ़ते चलें, परिणाम सुखद होगा।

अधिकतर लोग पैसे के लिए हाय- हाय करते दिखते हैं, पूरी उम्र बीत जाने के बाद भी वही ढाक के तीन पात। कारण साफ है कि आप ने अपने कार्यों का मूल्यांकन कभी नहीं किया अन्यथा आपको पैसे की तलाश में भटकना नहीं पड़ता।

यहाँ पर भी श्रद्धा आपकी सहेली बन आत्मविश्वास बढ़ाने का कार्य खूबसूरती से करेगी। अपने अंदर हुनर पैदा करें और उसे तराशने में पूरे मनोयोग से जुट जाएँ। देखते ही देखते कई राहें आपके सामने होगीं और कार्य से अधिक का परिणाम अवश्य मिलेगा। बस बोले नहीं कार्य करें क्योंकि कार्य जब बोलेंगे तभी शुभ फल मिलेंगे और कर्म ,धर्म व मर्म सभी आप के अनुसार चलने लग जायेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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