डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘भगवान का क्या सरनेम है?’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 116 ☆

☆ लघुकथा – भगवान का क्या सरनेम है? ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

कक्षा में टीचर के आते ही विद्यार्थी ने एक सवाल पूछा – मैडम! नेम और सरनेम में क्या ज़्यादा इम्पोर्टेंट होता है? 

‘मतलब’? – मैडम सकपका गईं फिर थोड़ा संभलकर बोली – यह कैसा सवाल है निखिल? 

पापा कहते हैं कि किसी को उसके सरनेम से बुलाना चाहिए, नाम से नहीं। सरनेम इम्पोर्टेंट होता है। 

लेकिन क्यों? नाम से बुलाने में कितना अपनापन लगता है। नाम हमारी पहचान है। माता- पिता कितने प्यार से अपने बच्चे का नाम रखते हैं। 

 मैम! पर पापा कहते हैं कि सरनेम हमारी सच्ची पहचान होता है। हम किस जाति के हैं, धर्म के हैं, यह सरनेम से ही पता चलता है। दूसरों को इसका पता तो चलना चाहिए। 

अच्छा स्कूल में आपस में दोस्ती करने के लिए नाम पूछते हो या सरनेम? वैशाली! तुम बताओ। 

मैम! नेम पूछते हैं। 

मेरे पापा ने बताया कि सरनेम हमारा गुरूर है, नेम से बुलाओ तो सरनेम हर्ट हो जाता है। वह बड़ा होता है ना! – अक्षत ने कहा। 

कक्षा के एक बच्चे ने कुछ कहने के लिए हाथ उठाया। हाँ बोलो क्षितिज! मैडम ने कहा। 

मैम! भगवान का क्या सरनेम है? 

©डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments