प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित ग़ज़ल – “श्रद्धायें-निष्ठायें टूटीं…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण   प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #129 ☆ ग़ज़ल – “श्रद्धायें-निष्ठायें टूटीं…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

परिवर्तन की आँधी आई, धुंध छाई अँधियार हो गया

जड़ से उखड़े मूल्य पुराने, तार-तार परिवार हो गया।

उड़ी मान मर्यादायें सब मिट गई सब लक्ष्मण रेखायें

कंचनमृग के आकर्षण में, सीता का संसार खो गया।

श्रद्धायें-निष्ठायें टूटीं, बढ़ीं होड की परम्परायें

भारतीय संस्कारों के घर पश्चिम का अधिकार हो गया।

पूजा और भक्ति की मालाओं के मनके बिखरे ऐसे

लेन-देन की व्याकुलता में जीवन बस बाजार हो गया।

गांवों-खेतों के परिवेशों में रहते संतोष बहुत था

दुखी बहुत मन, राजमहल का जब से जुनू संवार हो गया।

मन की तन की सब पावनता युगधारा में बरबस बह गई

अनाचार जब से इस नई संस्कृति का शिष्टाचार हो गया।

उथले सोच विचारों में फँस  मन मंदिर की शांति खो गई

प्रीति प्यार सब रहन रखा गये, जीना भी दुश्वार  हो गया।

रच एकल परिवार अलग सब भटक रहे है मारे-मारे

जब से सबसे मिल सकने को बंद घरों का द्वार हो गया।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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