श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ख़याल ज़माने से छुपा कर ख़ुश हूँ…”।)
ग़ज़ल # 73 – “ख़याल ज़माने से छुपा कर ख़ुश हूँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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इश्क़ की शम्मा जला कर ख़ुश हूँ,
मैं दिल में दर्द बसा कर ख़ुश हूँ।
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दिल जो धड़कता ज़िंदगी के लिए,
महबूब से दिल लगा कर ख़ुश हूँ।
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जिस नाम से भर आती थी आँख,
अब उससे नज़रें बचा कर ख़ुश हूँ।
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गीत ग़ज़ल में झूमता फिरता जो,
ख़याल ज़माने से छुपा कर ख़ुश हूँ।
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तोड़ नहीं पाया रिवायत की जंजीरें,
पिंजरा खोल परिंदा उड़ा कर ख़ुश हूँ।
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मिट्टी महकती अगर उसे सींचो तो,
मुहब्बत में आंसू बहा कर ख़ुश हूँ।
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तुम भी देखते रहो आतिश छुप कर,
मैं भी मासूम को हंसा कर ख़ुश हूँ।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈