श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है “वरदान और अभिशाप”।)
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 22 ☆
☆ वरदान और अभिशाप ☆
भगवान राम भी कर्म के कानून से नहीं बच पाए। उन्होंने एक वृक्ष के पीछे से बाली को मार डाला था, न कि लड़ाई की खुली चुनौती से। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाली को वरदान था कि अगर कोई उससे लड़ने के लिए उसके सामने आ जाए तो बाली को उसकी आधी शक्ति मिल जाएगी।
इसलिए भगवान विष्णु के अगले अवतार, भगवान कृष्ण के रूप में इस कार्य के लिए, उन्हें जरा (अर्थ : माँ) नामक एक शिकारी के हाथों वृक्ष के पीछे से छिप कर चलाये गए तीर से मृत्यु मिली। जानते हैं वो जरा कौन था? वह बाली का अगला जीवन था, जिसने अपने पिछले जन्म में भगवान राम द्वारा छिप कर चलाये हुए तीर से मृत्यु प्राप्त की थी जिसका परिणाम स्वरूप भगवान कृष्ण की मृत्यु भी समान रूप से हुई वो भी उसी केहाथोंजिसे उन्होंने पिछले जन्म में मारा था। इसी को कर्मोंका क़ानून कहते हैं।
क्या आप जानते हैं कि कर्म का अभिशाप और कानून इतना प्रभावी है कि उसने भगवान कृष्ण के सभी राज्यों को बर्बाद कर दिया था । बेशक अगर भगवान कृष्ण चाहते, तो वे उनसे बच सकते थे, क्योंकि यह सब स्वयं उनकी अपनी माया के तहत ही रचा गया था, लेकिन यदि वह ऐसा करते, तो ऐसा लगता कि भगवान अपने द्वारा बनाये गए नियम स्वयं ही तोड़ रहे हैं, तो आम लोग उनका अनुसरण क्यों करेंगे?
भगवान कृष्ण से अधिक बुद्धिमान कौन है? कोई नहीं।
वह कुरुक्षेत्र की लड़ाई में पांडवों के साथ थे क्योंकि उन्हें पता था कि यदि पांडव उस युद्ध को हार जायँगे, तो धर्म का नुकसान होगा और कौरव कभी भी आदर्श राजा नहीं बन पायेंगे जिससे कि कौरवों के शासन में, सभी आम लोगों को भारी मुसीबतों और परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए धार्मिक कानून स्थापित करने के लिए, भगवान कृष्ण को पता था कि पांडवों की जीत आवश्यक है। सभी जानते हैं कि कौरव सेना के पास पांडव सेना से ज्यादा कई और शक्तिशाली योद्धा थे।
© आशीष कुमार