आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – पपड़ाये हैं अधर नदी के…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 01 – पपड़ाये हैं अधर नदी के… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

पपड़ाये हैं अधर नदी के

है व्याकुल प्यासी

 

जर्जर जीर्ण-शीर्ण दिखते हैं

झील, सरोवर, ताल

मेघ, रूठकर गये

कछारों पर छाया दुष्काल

प्रकृति कराह रही निर्वसना

बेबस अबला सी

 

नींद नहीं खुल रही

नशेड़ी पहरेदारों की

इज्जत लूट रहे आतंकी

हरित कछारों की

वृक्षावलियाँ आज हुई हैं

महलों की दासी

 

नदियों की सेवा करते थे

जो निर्झर नाले

वृक्ष हुए उद्गम से गायब

रस देने वाले

लोक घुनें हैं मूक

नहीं मुखड़े पर उल्लासी 

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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