श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “सूरज सगा कहाँ है…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 05 ☆ सूरज सगा कहाँ है… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
घेर हमें अँधियारे बैठे
जाने कब होगा भुन्सारा
सूरज अपना सगा कहाँ है?
जले अधबुझे दिए लिए
अब भी चलती पगडंडी
सड़कें लील गईं खेतों को
फसल बिकी सब मंडी
गाँव गली आँगन चौबारा
निठुर दलिद्दर भगा कहाँ है?
रिश्ते गँधियाते हैं
संबंधों में धार नहीं है
मँझधारों में नैया
हाथों में पतवार नहीं है
डूब चुका है पुच्छल तारा
चाँद-चाँदनी पगा कहाँ है?
नहीं जागती हैं चौपालें
जगता है सन्नाटा
अपनेपन से ज़्यादा महँगा
हुआ दाल व आटा
कैसे होगा राम गुजारा
भाग अभी तक जगा कहाँ है?
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
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