श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक माइक्रो व्यंग्य  – “बैरन नींद न आय…”।)

☆ माइक्रो व्यंग्य # 187 ☆ “बैरन नींद न आय…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

बहुत दिनों से एक नेता परेशान हैं, रात को सो नहीं पाता। राजधानी से जब अपने गांव आता है तो रास्ते भर कुत्ते उसको देखकर भौंकने लगते हैं। एक बार तो बड़ा गजब हो गया, रास्ते में जब वह लघुशंका के लिए कार से उतरा तो पीछे से एक कुत्ता आया और खम्भा समझकर उसके खम्भे जैसे पैर पर अपनी लघुशंका दूर कर दी। देखकर ड्राईवर मंद मंद मुस्कराया। और गीला पजामा से नेता परेशान हो गया। उसने पिस्तौल निकाली तब तक कुत्ता कईं केईं करता भाग गया, एनकाउंटर से बच गया।

जब घर पहुंचा तो रात हो गई थी, अपनी पत्नी के साथ जब वो सो रहा था तो खिड़की के पास लड़ैया ‘हुआ हुआ’… करने लगे। कई दिन ऐसा चलता रहा।  रात को उसकी नींद हराम होती थी और दिन में कुत्ते तंग करने लगे थे।

हारकर उसने अपनी कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई तो ज्योतिषी ने बताया कि नेताजी आपने अपने क्षेत्र के विकास में ध्यान नहीं दिया, सरकारी फायदे उठाते रहे और राजधानी में जाकर सोते रहे। अकूत संपत्ति बनाने और पैसा खाने के चक्कर में रहे आये और जनता के दुख दर्द और परेशानियों भरे आवेदन पत्र जलाकर मुस्कराते रहे।

नेता – कोई इलाज , इनसे बचने के लिए क्या करना चाहिए  ?

ज्योतिषी – सड़क किनारे की दस बारह एकड़ जमीन हमारे नाम से कर दो, जो हमारे पिताजी से छुड़ायी थी। शान्ति भी रहेगी और नींद भी आयेगी। क्या पता, पिताजी कुत्ता बन कर आपको काट लें तो ?

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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