प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #131 ☆ ग़ज़ल – “काम होना चाहिये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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सिर्फ बाते व्यर्थ है, कुछ काम होना चाहिये
हर हृदय को शांति-सुख-आराम होना चाहिये।
बातें तो होती बहुत पर काम हो पाते हैं कम
बातों में विश्वास का पैगाम होना चाहिये।
उड़ती बातों औ’ दिखाओं से भला क्या फायदा ?
काम हो जिनके सुखद परिणाम होना चाहिये।
हवा के झोंको से उनके विचार यदि जाते बिखर
तो सजाने का उन्हें व्यायाम होना चाहिये।
लोगों की नजरों में बसते स्वप्न है समृद्धि के
पाने नई उपलब्धि नित संग्राम होना चाहिये।
पारदर्शी यत्न ऐसे हों जिन्हें सब देख लें
सफलता जो मिले उसका नाम होना चाहिये।
सकारात्मक भावना भरती है हर मन में खुशी
सबके मन आनन्द का विश्राम होना चाहिये।
आसुरी दुशवृत्तियों के सामयिक उच्छेद को
साथ शाश्वत सजग तत्पर ’राम’ होना चाहिये।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈