श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 190 ☆ जानना और मानना
मनुष्य अन्वेषी प्रवृत्ति का है। इसी प्रवृत्ति के चलते कोलंबस ने अमेरिका ढूँढ़ा, वास्को-डी-गामा भारत तक आया। शून्य का आविष्कार हुआ। मनुष्य ने दैनिक उपयोग के अनेक छोटे-बड़े उपकरण बनाए। खेती के औज़ार बनाए, कुआँ खोदने के लिए, कुदाल, फावड़ा बनाए। स्वयं को पंख नहीं लगा सका तो उड़ने के अनुभव के लिए हवाई जहाज और अन्यान्य साधन बनाए। समय के साथ वर्णमाला विकसित हुई, संवाद के लिए पत्र का चलन हुआ। शनै:- शनै: यह तार, टेलीफोन, मोबाइल, ई-मेल तक पहुँचा। कोरोनावायरस में ऑनलाइन मीटिंग एप बने। आँखों दिखते भौतिक को जानना चाहता है मनुष्य और जानने के बाद मानने लगता है मनुष्य।
विसंगति देखिए कि विचार या दर्शन के स्तर पर, बहुत सारी बातें जानता है मनुष्य पर मानता नहीं मनुष्य। कुछ-कुछ हैं जो मानने लगते हैं पर इस प्रक्रिया में लगभग सारा जीवन ही बीत जाता है। अधिकांश तो वे हैं जिनकी देह की अवधि समाप्त हो जाती है पर भीतर की जड़ता सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होती। झूठ बोलने वाला जीवन भर अपने असत्य को स्वीकार नहीं करता। आलसी अपने आलस को अलग-अलग कारणों का जामा पहनाता है लेकिन खुद को आलसी ठहराता नहीं। अहंकारी अपनी सारी साँसें अहंकार को समर्पित कर देता है पर जताता यों है, मानो उस जैसा विनम्र धरती पर दूसरा ना हो। अटल मृत्यु का सच प्रत्येक को पता है। हरेक जानता है कि एक दिन मरना होगा लेकिन इस शाश्वत सत्य को जानते हुए भी व्यक्ति इतने पाखंडों में जीता है, जैसे कभी मरेगा ही नहीं…और जब मरता है तो जीवन का हासिल शून्य होता है। अर्थात मरा भी तो ऐसे जैसे कभी जिया ही न हो। सच तो यह है कि जानने से मानने तक का प्रवास मनुष्य को मनुष्यता प्रदान करता है। मनुष्यता ही आगे संतत्व का द्वार खोलती है।
गुजरात के भूकंप के समय की घटना किसी परिचित ने सुनाई थी। सेवानिवृत्त एक उच्च पदाधिकारी अपनी हाईक्लास हाऊसिंग सोसायटी के पीछे स्थित झोपड़पट्टी से बहुत ख़फ़ा थे। उच्चवर्गीय क्षेत्र में यह झोपड़पट्टी उन जैसे संभ्रांतों के लिए धब्बा थी। नगरनिगम को बीच-बीच में इसके अनधिकृत होने और हटाने के लिए पत्र लिखते रहते थे। भूकम्प में उनका भी घर ध्वस्त हुआ। बेहोश होकर वे एक झोपड़ी पर जाकर गिरे। सरकारी सहायता पहुँचने तक झोपड़ी में रहनेवाले परिवार ने चावल का माँड़ पिलाकर उन्हें जीवित रखा। बाद में अस्पताल में उनका इलाज हुआ।
मनुष्य कुल के अद्वैत को जानते तो वे भी होंगे पर मानने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। दैनिक जीवन में यह और इस जैसे अनेक उदाहरण हमारे सामने आते हैं।
हमारे पूर्वज विषय के विभिन्न आयामों को समझने के लिए शास्त्रार्थ करते थे। सामनेवाले विद्वान से शास्त्रार्थ में यदि पराजित हो जाते तो उसके तत्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेते थे। यह जानने से मानने की ही यात्रा थी।
बहुत कुछ है, जो हम जानते हैं, बस जिस दिन मानना आरंभ कर देंगे, जीवन की दिशा बदल जाएगी। जानना सामान्य बात है, मानना असामान्य। स्मरण रहे, मनुष्य जीवन सामान्य के लिए नहीं अपितु असामान्य होने के लिए मिला है। निर्णय हरेक को स्वयं करना है।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
श्री हनुमान साधना
अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक
इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही
💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी।💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।