श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 79 – सजल – चलो अब मौन हो जायें… ☆
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1 पथिक
जीवन के हम हैं पथिक, चलें नेक ही राह।
चलते-चलते रुक गए, तन-मन दारुण दाह।।
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2 मझधार
जीवन के मझधार में, प्रियजन जाते छोड़।
सबके जीवन काल में, आता है यह मोड़।।
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3 आभार
जो जितना सँग में चला, उनके प्रति आभार।
कृतघ्न कभी मन न रहे, यह जीवन का सार।।
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4 उत्सव
जीवन उत्सव की तरह, हों खुशियाँ भरपूर।
दुख, पीड़ा, संकट घड़ी, खरे उतरते शूर।।
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5 छाँव
धूप-छाँव-जीवन-मरण, हैं जीवन के अंग।
मानव मन-संवेदना, दिखलाते बहु रंग।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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