डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है एक विचारोत्तेजक कविता “भैंस उसी की…….”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 27☆
☆ भैंस उसी की……. ☆
भैंस उसी की,जिसकी लाठी
खूब चल रही बांटा – बांटी।
चोर पुलिस का खेल चल रहा
धनिया पुनिया हाथ मल रहा
बिचौलियों की बन आई है
धंधा इनका खूब फल रहा,
जीवन भर कुछ लुच्चों ने
बेशर्मी से है फसलें काटी।
भैंस उसीकी,….
इधर – उधर से, देते झांसे
आम आदमी को सब फांसे
इक – दूजे से भिड़ा रहे हैं
इन्हें नहीं दिखती है लाशें,
वोटों औ’ नोटों के मद में
भूले शुष्क जड़ों की माटी।
भैंस उसी की….
आज इधर कल उधर हो लिए
स्वांग अनेक धरे बहुरूपिए
पैसे,पद,कुर्सी की खातिर
बन बैठे निर्मम बहेलिए,
कैसे करें भरोसा इन पर
ये हैं कोरे गल्प गपाटी।
भैंस उसी की….
लेपटॉप फोकट में देंगे
किंतु वोट बदले में लेंगे
ऋण माफी कंबल दारू में
खुशी-खुशी हम सभी बिकेंगे,
स्वाभिमान निज भूल गए हैं
भूल गए वह हल्दीघाटी।
भैंस उसी की…..
वंश वाद के ढंग निराले
तन उजले मन से हैं काले
अजब पहेली कैसे बूझें
ये सब तो मकड़ी के जाले
नर-वानर में होड़ मची है,
लगा रहे हैं सभी गुलाटी।
भैंस उसी की जिसकी लाठी।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 989326601