श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# नवतपा… #”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 133 ☆
☆ # नवतपा… # ☆
अंबर से आग के शोले
बरस रहे हैं
पशु, पक्षी, मानव
छांव को तरस रहे हैं
बहती गर्म हवाएं
शरीर को झुलसा रही है
कंचन, कोमल काया
ताप से कुम्हला रही है
धरती जलकर
गर्म हो गई है
प्रेम में व्याकुल
दुल्हन सी
अंदर से नर्म
हो गई है
उसकी प्यास बढ़ती ही
जा रही है
दूर दूर से
मेघों की बारात
मृगतृष्णा जगा रही है
कभी कभी
छोटी छोटी बूंदें
आसमान से
धरती पर उतर आती है
बादलों में गर्जन
बिजुरी की कड़क
आंधी और तूफान
बहुत है पर कहीं
गर्मी से राहत
नजर नहीं आती है
हर सुबह
हर दोपहर
हर शाम
वो बावरी बन
आकाश में
ताक रही है
हर पल
हर घड़ी
हर वक्त
अपने प्रियंकर
मेघों को
झांक रही है
क्या यह नवतपा
प्रचंड तपकर
घनघोर मानसून लायेगा
या
धरती से झूठे वादे कर
काली घटाओं में छाकर
धरती को व्याकुल छोड़कर
राजनीतिक मौसम की तरह
वो बेवफा हो जायेगा /
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈