श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #2 ☆

 ☆ कविता ☆ “बेबस वन…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

वैसे तो मैं मायूस नहीं होता

बेबसी के वन से खफा नहीं होता

दर्द को जीतना जरूरी है

जीतकर भी हारना यहां का रिवाज़ है ।

 

दौर तो आयेंगे, दौर तो जाएंगे

मौसम भी कभी तो मिट जाएंगे

पहले मिटकर ही फिर बना हूं

मौसम सड़क का अभी भूला नहीं हूं ।

 

हां कभी कुछ पल आते है

जो बेहद बेबस करते है

इलाज उनके जानता हूं

दवा भी शौक से पीता  हूं ।

 

पत्थर दिल बनना पड़ता है

किलों से दिल को जोड़ना पड़ता है

गर बेबसी के वन में जिंदा रहना है

तो वनराज बनके ही रहना पड़ता है ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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S. L. Shrotri

That’s beauuuuutiful !!
Please keep it up !!!